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यह दिल दहला देने वाली कहानी शुरू होती है 12 अक्टूबर 1972 को साउथ अमेरिका के यूरुग्वे देश से एक चार्टिट प्लेन उड़ान भरता है जिसको चिली देश की राजधानी सैंटियागो में पहुंचना है। इस प्लेन में बैठे हैं रग्बी प्लेयर्स और उनका मैच देखने जा रहे हैं उनके फैमिली मेंबर्स और उनके रिलेटिव और उनके यार दोस्त।
इस प्लेन में टोटल 45 पैसेंजर हैं जिनमें नौ क्रू मेंबर हैं यह फ्लाइट 3 घंटे में अपनी डेस्टिनेशन पर पहुंच जाएगी लेकिन रास्ते में इनको एंडीज की पहाड़ियों को पार करना होगा। लेकिन दुर्भाग्य से आगे चलकर मौसम खराब मिलता है इस वजह से इस फ्लाइट को रास्ते में ही अर्जेंटीना में मेंडोजा शहर में लैंड कराया जाता है।
यह फ्लाइट रात भर वहीं रुकती है और अगले दिन यानी 13 अक्टूबर को उड़ान भरने के लिए तैयार होती है लेकिन परेशानी यह है कि अभी भी मौसम खराब है लेकिन अच्छी बात यह है कि इस फ्लाइट का जो पायलट है वह इस रूट से पहले भी 29 बार उड़ान भर चुका है ।
इस वजह से उसे पूरा आईडिया है कि इन एंडीज की पहाड़ियों को कैसे पार करना है पायलट के कॉन्फिडेंस की वजह से यह फ्लाइट 13 अक्टूबर को दोपहर के 2:18 पर फिर से उड़ान भरती है यहां से सैंटियागो पहुंचने में सिर्फ 1 घंटे का रास्ता बचा है और पायलट को पूरा भरोसा है कि 1 घंटे के बाद वह सही सलामत सैंटियागो में पहुंच जाएंगे यह प्लेन करीब 18000 फीट के एल्टीट्यूड पर उड़ रहा था ।
और धीरे-धीरे एंडीज की पहाड़ियों को पार करता जा रहा था लेकिन आगे चलकर मौसम और खराब होता गया जिस वजह से विजिबिलिटी और कम हो गई। और पायलट को आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था अगर मौसम साफ होता तो पायलट आसमान की पहाड़ियों को देखकर आइडिया लगा लेता की प्लेन कहां है लेकिन इस समय तो पायलट केवल प्लेन के इंस्ट्रूमेंट पर ही निर्भर है ।
अब क्योंकि पायलट को पता था कि वह 1 घंटे में सैंटियागो पहुंच जाएंगे इसीलिए वह अपनी लोकेशन का रफ आकलन करता है और 1 घंटे के बाद जब उसे लगा कि उसने एंडीज की पहाड़ियों को पार कर लिया है तो उसने सैंटियागो एयरपोर्ट पर एटीसी से प्लेन को लैंड करने की अनुमति मांगी एटीसी ने पूछा कि क्या आपने एंडीज की पहाड़ियों को पार कर लिया है तो पायलट ने कहा कि हां उन्होंने एंडीज की पहाड़ियों को पार कर लिया है।
एटीसी पायलट द्वारा दी गई लोकेशन पर ही निर्भर था तो एटीसी ने प्लेन को लैंड कराने की परमीशन दे दी और पायलट को कहा कि आप प्लेन को 11500 फीट के एल्टीट्यूड पर ले आओ 3:21 पर पायलट प्लेन को एल्टीट्यूड को धीरे-धीरे घटाने लगा जैसे ही प्लेन नीचे आता है तो पायलट को दिखाई देता है कि अभी तो एंडीज की पहाड़ियां ही चल रही हैं ।
और सामने एक बहुत बड़ी चट्टान है जल्दी से पायलट प्लेन को फिर से ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी प्लेन को ऊपर उठाते उठाते प्लेन का पिछला हिस्सा पहाड़ी से टकरा जाता है और वह टूटकर अलग हो जाता है प्लेन का पिछला हिस्सा खत्म होने की वजह से पीछे की जो सीटें थी वह यात्रियों सहित हवा में उड़ जाती हैं और तीन पैसेंजर हवा में ही उड़कर खत्म हो जाते हैं ।
इस टकराव में प्लेन का राइट विंग भी टूट चुका था जिस वजह से प्लेन डिसबैलेंस हो जाता है जिस वजह से उसकी दूसरी विंग भी पहाड़ी से टकराती है और वह भी टूट जाती है अब केवल प्लेन का फ्रंट पार्ट बचा था जो 350 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से नीचे ग्लेशियर से टकराता है प्लेन पूरी तरह से तहस नहस हो जाता है प्लेन के पायलट तुरंत मारे जाते हैं।
45 में से 12 लोग इस घटना में मारे जा चुके हैं और 33 लोग अभी भी जिंदा हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर बहुत जख्मी हालत में हैं और उन्हें यह भी नहीं पता कि इस समय वह कहां पर हैं यह क्रैश हुआ प्लेन जमीन से 3570 मीटर की ऊंचाई पर एंडीज की किसी अनजान पहाड़ी पर बिखरा पड़ा है क्या वह इस पहाड़ी से बचकर निकल पाएंगे या नहीं यह कोई नहीं जानता अभी तक जो हुआ वह तो महज एक छोटा सा ट्रेलर था ।
इस फ्लाइट की असली कहानी तो अब शुरू होगी आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आगे चलकर उनके साथ क्या-क्या होने वाला है यह वीरान एंडीज की पहाड़ियां अब इन पर कहर बनकर बरसने वाली हैं इनकी आगे की कहानी जानकर आपकी रूह तक कांप जाएगी घायल हुए पैसेंजर में से एक पैसेंजर था नांदो पराडो जिसके सिर में चोट आई थी जिस वजह से वह कोमा में चला गया।
परेशानी यह थी कि जल्द ही शाम होने वाली थी इस वजह से रेस्क्यू टीम के पास उनको ढूंढने के लिए ज्यादा वक्त नहीं था और बाई चांस अंधेरा होने से पहले उनको नहीं बचाया गया तो इस बर्फीली पहाड़ी पर रात गुजारना नामुमकिन होगा क्योंकि यहां का तापमान रात में -30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जल्द ही रेस्क्यू के लिए चार जहाज रवाना किए गए इन चारों जहाजो ने एंडीज की पहाड़ियों को खंगार डाला लेकिन इन्हें कहीं भी कुछ भी नहीं मिला।
क्योंकि प्लेन ऐसी जगह पर क्रैश हुआ था जहां पर सफेद बर्फ और घना कोरा था और प्लेन भी सफेद रंग का ही था इस वजह से ऊपर से देखने पर रेस्क्यू टीम को क्रैश साइड का अंदाजा ही नहीं हो पा रहा था देखते ही देखते रात हो गई और उसे रात भर के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन को स्थगित कर दिया गया बचे हुए पैसेंजर को उम्मीद थी कि वह कैसे भी करके सिर्फ आज की रात काट ले कल तो उन्हें कोई ना कोई बचा ही लेगा।
और उन्होंने क्रैश पड़े प्लेन में शेल्टर बनाया और रात गुजारी यह रात उनके लिए बहुत भयानक थी क्योंकि आज की रात इन्हें - 30 डिग्री सेल्सियस में गुजारनी है। लेकिन उनके पास एक उम्मीद है कि कल इन्हें कोई ना कोई ढूंढ लेगा और बचा लेगा इस उम्मीद में यह इस रात को कैसे भी करके काट लेते हैं लेकिन पांच लोग इस रात को नहीं झेल पाते और अब जिंदा बचे हुए लोगों की संख्या 33 से घटकर 28 रह जाती है ।
अगले दिन की सुबह 14 अक्टूबर को सर्च ऑपरेशन फिर से चालू किया जाता है और 11 जहाज इन्हें ढूंढने के लिए उड़ान भरते हैं लेकिन परेशानी वही थी कि क्रैश हुआ प्लेन सफेद रंग की वजह से बर्फीली पहाड़ियों में नजर ही नहीं आ रहा था बचाव दल के जहाज सरवाइवर्स के ऊपर से उड़कर जा रहे थे लेकिन उन्हें वह नीचे नजर ही नहीं आ रहे थे ।
इस वजह से सरवाइवर ने बचाव दल को सिग्नल देने के लिए प्लेन के ऊपर लिपस्टिक से एसओएस लिखने की कोशिश की लेकिन उन्हें रियलाइज हुआ की साफ लिखने के लिए लिपस्टिक काफी नहीं थी इस वजह से उन्होंने अपने सूट केसेस से बर्फ पर एक बड़ा सा क्रॉस बना दिया ताकि वह आसमान से बचाव दल को साफ-साफ दिखाई दे सके ।
उस दिन इनके ऊपर से तीन हवाई जहाज निकलकर गए लेकिन अफसोस की किसी ने भी इनको नोटिस नहीं किया और यह दिन भी गुजर जाता है अगला दिन यानी 15 अक्टूबर उस दिन भी कुछ ऐसा ही हाल रहता है। लेकिन बचाव दल उन्हें ढूंढने में असमर्थ रहता है अब इन सरवाइवर्स को समझ आ चुका था कि यह बहुत बुरे फस चुके हैं मदद कब तक आएगी यह कहा नहीं जा सकता इस वजह से वह प्लेन में मौजूद चीजों से सर्वाइवल की तकनीक बनाने लगे धूप में बर्फ को पिघलाकर वह बूंद बूंद करके पानी की व्यवस्था तो कर ले रहे थे।
लेकिन खाने के लिए उनके पास ज्यादा कोई ऑप्शन नहीं थे क्रैश के तीन दिन बाद यानी 16 अक्टूबर को नांदो पराडो कोमा से जाग उठता है और जैसे ही उसे होश आता है तो उसे पता चलता है कि इस क्रैश में उसकी मां खत्म हो चुकी है और उसकी 19 साल की बहन गंभीर रूप से घायल है दिन प्रतिदिन गुजर रहा है मदद मिल नहीं पा रही है। प्लेन में जो खाना था वह भी खत्म हो चुका है।
सूरज की रोशनी बर्फ से रिफ्लेक्ट होकर उनकी आंखों को डैमिज कर रही है भूख प्यास और असहनीय ठंडी को सहते सहते अब इन्हें इस पहाड़ी पर 8 दिन गुजर चुके थे रेस्क्यू प्लेन आते और उनके ऊपर से निकल जाते। क्रैश के आठ दिन बाद नांदो पराडो की बहन भी जीवन की लड़ाई को हार जाती है और अपना दम तोड़ देती है और उधर 8 दिनों के बाद सर्च अभियान को रोक दिया जाता है ।
क्योंकि अक्टूबर के महीने में वहां पर बहुत ज्यादा बर्फ पड़ती है इस वजह से सर्च अभियान को 2 महीने के लिए स्थगित कर दिया जाता है। ऑफिशियल को यह लगता है कि इन आठ दिनों में सारे यात्री मारे जा चुके होंगे इस वजह से उनकी मुर्दा बॉडीज को 2 महीने के बाद खोज कर उनके घर वालों को भिजवा दिया जाएगा ।
इधर सरवाइवर्स को प्लेन के मलबे में एक रेडियो मिला जब सरवाइवर्स ने रेडियो को ऑन किया तो उसमें उन्हें की न्यूज़ ब्रॉडकास्ट हो रही थी की फ्लाइट 571 के सर्च ऑपरेशन को अब बंद कर दिया गया है इस न्यूज़ ने सरवाइवर्स के होश उड़ा दिए अभी तक तो उनको अपने खोजे जाने की एक उम्मीद थी लेकिन वह अब रेडियो पर अपने ही मरने की खबर सुन रहे थे अपने खोजे जाने की एक उम्मीद की किरण थी वह भी टूट चुकी है ।
अब उनको पता है कि यहां पर मौत निश्चित है अब या तो परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी होने दो या उनका डटकर सामना करो उन्होंने प्लेन की सीटों को फाड़कर उसकी रुई को अपने कपड़ों में भरकर ठंड से बचने की कोशिश की सीट कवर्स को पैरों में लपेटकर बर्फ में चलने के लिए जूते बनाएं। सबसे बड़ी दिक्कत खान की थी अब जिंदा रहने के लिए उनके पास सिर्फ एक ही ऑप्शन था वह करना जो इतिहास में कभी भी किसी ने नहीं किया जिसके बाद में सोंचकर ही रूह कहां जाए।
इन्होंने बर्फ में पड़ी फैमिली मेंबर्स रिलेटिव और जिनके साथ वह कभी खेले कूदे थे। उन यार दोस्तों की मुर्दा बॉडीज को खाने का फैसला किया हालांकि यह फैसला लेना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था एक-एक करके दिन गुजरता जा रहा था इनके पास खुद को बचाने के लिए कोई भी प्लान नहीं था वह रात को ठंड से बचने के लिए टूटे पड़े प्लेन के अंदर ही सोते। लेकिन क्रैश के 16 दिन बाद यानी 29 अक्टूबर को कुदरत ने इनको एक और झटका दिया ।
वह रात में सो रहे थे और अचानक उन्हें पता चलता है कि पहाड़ से बर्फ का एक मोटा हिस्सा टूटकर नीचे गिर रहा है यह एवलॉन्च इतनी जोर से आया कि भारी मात्रा में मौजूद बर्फ ने उनके टूटे प्लेन को अपनी चपेट में ले लिया। उनका प्लेन बर्फ के नीचे दब चुका था और प्लेन के अंदर भी बर्फ घुस चुकी थी जिस वजह से उनके लिए ऑक्सीजन की कमी हो गई और दम घुटने की वजह से आठ और लोग अपना दम तोड़ देते हैं।
और अब केवल 19 लोग ही जिंदा बचे हैं लेकिन वह भी बर्फ के नीचे दबे हैं इस बर्फ से बाहर निकलने में इन लोगों को तीन दिनों का समय लग जाता है अब इन्हें रियलाइज हो जाता है कि यहां रहेंगे तो एक-एक करके सब लोग मारे जाएंगे इससे अच्छा है कि इस पहाड़ी से बाहर निकलकर मदद ढूंढने की कोशिश की जाए उन लोगों में ज्यादातर सभी जख्मी हालत में थे इस वजह से वह इस पहाड़ी को पार करने में सक्षम नहीं थे ।
लेकिन तीन लोग ऐसे थे जो कम चोटिल थे इस वजह से उन तीनों ने इस पहाड़ी से बाहर निकलकर मदद लाने का फैसला किया उन्होंने रास्ते के लिए मांस के टुकड़े अपने साथ लिए और उनको ठंड से बचने के लिए सबसे मोटे कपड़े दिए गए और क्रैश के 33 दिनों के बाद यानी 15 नवंबर को यह तीनों लोग मदद ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं चलते-चलते इनको शाम होने लगती है ।
तभी उनकी नजर प्लेन के दूसरे टूटे हुए हिस्से पर पड़ती है प्लेन का जो पिछला हिस्सा टूटकर अलग हो गया था उन्हें वह दिखाई देता है जब वह उस मलबे के पास जाते हैं तो उन्हें उसमें खाने के लिए बहुत कुछ मिलता है आज की रात उन्होंने इसी में गुजारने का फैसला किया पिछले कुछ दिनों में आज की यह रात उनके लिए अच्छी रही प्लेन के उस पिछले भाग में उन्हें एक बैटरी मिली।
उन्होंने सोचा क्यों ना इस बैटरी को प्लेन के मेन बॉडी के पास ले जाया जाए और उसमें लगी कम्युनिकेशन डिवाइस को चालू करके मदद बुलाई जाए लेकिन बैटरी का वजन 25 किलोग्राम था इतनी भारी बैटरी को इतनी कमजोर हालत में क्रैश साइड पर ले जाना संभव नहीं था फिर उन्होंने सोचा कि प्लेन की मेन बॉडी से उसे कम्युनिकेशन डिवाइस को ही निकालकर इस बैटरी के पास लाया जाए और उसे चालू किया जाए।
जिसकी मदद से वह बचाव दल को बुला सकें कुछ दिनों तक इन्होंने इसे चालू करने की कोशिश की लेकिन इन्हें सफलता नहीं मिली और क्रैश के 59 दिनों बाद यानी 11 दिसंबर को एक और एवलॉन्च आता है जिसमें तीन और सरवाइवर्स मारे जाते हैं इसके बाद जिंदा बचे लोगों की संख्या 16 रह जाती है । और यह तीनों नौजवान कनेसा पराडो और जर्बीनो बिना किसी गियर के ग्लेशियर पर चढ़ाई करने के लिए निकल पड़ते हैं ।
यह तीनों पश्चिम दिशा की ओर चलते चले जाते हैं लेकिन यह बिल्कुल भी नहीं जानते कि जिस दिशा में यह जा रहे हैं उसमें कोई इंसानी बस्ती इन्हें मिल पाएगी या नहीं उनको बस यह लग रहा था कि उनको इस सामने वाली पहाड़ी को पार करना है और उन्हें मदद मिल जाएगी और उन्हें उम्मीद थी कि वह तीन दिनों में इस पहाड़ी को पार कर लेंगे ।
इसीलिए उन्होंने अपने साथ में सिर्फ तीन दिनों के लिए ही मीट की सप्लाई रखी इन्होंने धागे से सिलकर एक स्लीपिंग बैग बनाया था। यह दिन भर बिना किसी गियर के पहाड़ पर चढ़ने और रात में एक ही स्लीपिंग बैग में तीनों चिपक कर सोते खुले में बिना किसी सुविधा के - 30 डिग्री सेल्सियस में रात गुजारना कोई आसान बात नहीं थी चलते-चलते इन्हें चौथे दिन की सुबह हो चुकी थी ।
लेकिन अच्छी बात यह थी कि वह अब उस पहाड़ी की चोटी पर पहुंच चुके थे जैसे ही यह पहाड़ की चोटी पर पहुंचे तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। क्योंकि पहाड़ पर चढ़कर इन्हें पता चला कि वह इतने दिनों से जिस दिशा में चल रहे थे वह गलत दिशा थी आगे रास्ता खत्म ही नहीं होता अब क्योंकि उनके पास खाने की सप्लाई बहुत कम थी इस वजह से उन्होंने फैसला किया कि उनमें से एक बंदा क्रैश साइड पर वापस चला जाएगा और दो लोग आगे जाएंगे ।
इस वजह से जर्बीनो वापस लौट जाता है और पराडो और कनेशा आगे बढ़ जाते हैं उसे पहाड़ की चोटी पर चढ़ने के बाद उनको सही रास्ता का अनुमान हो जाता है और यह दोनों कई दिनों तक आगे बढ़ते रहते हैं और कुछ दिनों के बाद इन्हें नदी की एक छोटी सी धारा मिलती है वह उसे धारा के साथ- साथ नीचे चलते रहते हैं और लगातार 9 दिनों तक चलने के बाद 20 दिसंबर को नदी के दूसरे किनारे पर इन्हें तीन लोग दिखाई देते हैं।
यह चलते-चलते बहुत थक चुके थे पिछले 9 दिनों में इन्होंने पहाड़ पर 61 किलोमीटर की हाइकिंग की थी और अब मंजिल उनके सामने थी इन्होंने उनसे मदद की गुहार लगाई लेकिन वह लोग टुमारो बोलकर चले गए उस दिन उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई लेकिन अगले ही दिन वह विलेजर्स फिर से वापस आया एक पत्थर में कागज और पेन लपेटकर नदी के दूसरे किनारे पर फेंका नांदो पराडो ने पेन और कागज को उठाकर जो भी घटना घटी थी ।
उसके बारे में सब कुछ लिख दिया जब उसे विलेजर्स ने उस पेपर को पढ़ा तो वह सब कुछ समझ गया। क्योंकि उसे पता था कि इन पहाड़ियों में कुछ दिन पहले प्लेन क्रैश हुआ था और उस एरिया में भी पूछताछ के लिए लोग आए थे लेकिन वह हैरान था कि यह लोग अभी तक जिंदा कैसे बचे हैं वह विलेजर जल्द से जल्द शहर गया और आर्मी कमांड के साथ इनफॉरमेशन को साझा किया।
और जल्द ही चिल्ली की एयरफोर्स इन्हें रेस्क्यू करने के लिए पहुंचती है आर्मी ऑफिसर पराडो और कनेशा को हेलीकॉप्टर में बैठकर क्रैश साइड पर पहुंचते हैं और 22 दिसंबर 1972 को क्रैश के 70 दिनों के बाद बचे हुए सरवाइवर्स को रेस्क्यू किया जाता है इन लोगों की हालत बहुत ज्यादा खराब थी इस क्रैश के बाद टोटल 16 लोग ही सरवाइव कर पाते हैं इनकी यह कहानी सच में दिल दहला देने वाली कहानी थी।
टिप्पणियाँ
Is par general knowledge ki post dalo or
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