गिद्ध के उपहार
एक राजा शिकार करने निकले। उन्होंने एक गिद्ध को देखा। यह एक विशाल गिद्ध था और उसके पंख तो इतने लंबे थे कि उनकी छाया में कई लोग खड़े हो सकते थे। राजा ने अपनी बंदूक गिद्ध की ओर करके निशाना साधा।
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Hindi Short Stories |
तभी गिद्ध बोला; 'हे राजा, मुझे मत मारो। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। तुम चाहो तो मुझे अपने साथ ले जाओ। यदि तुम मुझे एक वर्ष तक अपने साथ रखोगे तो तुम दुनिया के सबसे महान राजा बन जाओगे।' राजा को गिद्ध की बात पर विश्वास तो नहीं था,
फिर भी उन्होंने सोचा कि एक बोलने वाले गिद्ध की बात मानकर देख लेनी चाहिए।इसीलिए वे गिद्ध को अपने साथ ले गए। गिद्ध ने राजमहल में पहुँचते ही खाना माँगा। राजा ने उसे सब कुछ दिया, जो उसने माँगा। गिद्ध इतना ज़्यादा खाना रोज़ खाता था कि उसका पेट भरने के लिए धीरे-धीरे राजा की सारी संपत्ति समाप्त हो गई। फिर भी उन्होंने अपना वादा पूरा किया।
उन्होंने परेशानी में रहकर भी एक वर्ष तक गिद्ध को अपने पास रखा। एक वर्ष पूरा होने पर गिद्ध ने कहा, 'अब समय आ गया है कि मैं तुम्हें तुम्हारा इनाम दे दूँ। तुम मेरी पीठ पर सवार हो जाओ। मैं तुम्हें कहीं ले जाना चाहता हूं राजा गिद्ध की पीठ पर बैठ गया। गिद्ध ने अपने बडे़-बडे़ पंख फैलाए और उड़कर चल दिया। वह राजा के महल से दूर उड़ चला।
धीरे-धीरे सारे गाँव, शहर पीछे छूट गए। अब गिद्ध समुद्र के ऊपर से उड़कर जा रहा था। राजा ने नीचे देखा तो घबरा गए। नीचे दूर-दूर फैला हुआ समुद्र था और वे बहुत ऊँचाई पर उड़ रहे थे। घबराकर राजा ने ईश्वर को याद करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जब गिद्ध नीचे उतरा तो राजा ने ईश्वर को धन्यवाद दिया। गिद्ध बोला, 'राजा, आपको मैंने तीन उपहार दिए हैं।
उन्हें संभालकर रखिएगा।' “तीन उपहार ?” राजा ने आश्चर्य से पूछा। “जी हाँ तीन उपहार। मैंने आपको तीन बातें सिखाई हैं। वही हैं मेरे तीन उपहार। पहला उपहार-दयालु होना, दूसरा उपहार-अपना वचन निभाना और तीसरा उपहार-ईश्वर की शक्ति पर विश्वास करना।अपना सब कुछ गँवाकर भी आपने अपना वचन निभाया, मेरी प्रार्थना सुनकर मुझ पर दया की और मुझे नहीं मारा और कठिन समय में आपने ईश्वर पर विश्वास किया।
अब आपके पास एक अच्छा राजा बनने के सारे गुण हैं। आप अपने महल में वापिस जाइए और प्रजा की सेवा कीजिए।' राजा जब अपनी राजधानी में वापिस लोटे तो उन्होंने देखा कि उनकी वह सारी धन-दौलत, जो गिद्ध को पालने में ख़र्च हो गई थी, वापिस लौट आई है। यह ईश्वर का चमत्कार ही तो था। उन्होंने गिद्ध के रूप में अपने किसी दूत को भेजा था। राजा ने कई वर्षों तक राज्य किया। उनकी प्रजा सदा सुख से रही, क्योंकि उनके राजा एक अच्छे और नेक राजा थे।
चींटी और हाथी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक बार एक घमंडी हाथी था जो हमेशा छोटे जानवरों को धमकाता था और उनका जीवन कष्टदायक बनाता था। इसलिए सभी छोटे जानवर उससे परेशान थे। एक बार की बात है अपने घर के पास के चींटी की मांद में गया और चींटियों पर पानी छिड़का।
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चींटी और हाथी की कहानी |
ऐसा होने पर वो सभी चींटियाँ अपने आकार को लेकर रोने लगीं। क्योकि वो हाथी इनकी तुलना में काफ़ी बड़ा था और इसलिए वो कुछ नहीं कर सकती थीं। हाथी बस हँसा और चींटियों को धमकी दी कि वह उन्हें कुचल कर मार डालेगा। ऐसे में चींटियाँ वहाँ से चुपचाप चली गयी। फिर एक दिन, चींटियों ने एक सभा बुलायी और उन्होंने हाथी को सबक सिखाने का फैसला किया।
अपनी योजना के मुताबिक़ जब हाथी उनके पास आया तब वे सीधे हाथी की सूंड में जा घुसी और उसे काटने लगी। इससे हाथी दर्द से चिल्लाने लगा। क्योंकि चींटियाँ इतनी छोटी थी कि उनका यह हाथी कुछ नहीं कर सकता था। साथ में उसके शूँड के अंदर होने की वजह से वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।
अब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने चींटियों और उन सभी जानवरों से माफी मांगी जिन्हें उसने धमकाया था। उसकी ये पीड़ा देखकर चींटियों को भी दया आयी और उन्होंने उसे छोड़ दिया।
शिक्षा - विनम्र बनो और सभी के साथ दया का व्यवहार करो। अगर आपको लगता है कि आप दूसरों से ज्यादा मजबूत हैं, तो अपनी ताकत का इस्तेमाल उन्हें नुकसान पहुंचाने के बजाय उनकी रक्षा के लिए करना चाहिए।
सफलता की कहानी
एक बार की बात है अमेरिका में एक व्यक्ति जो कम पढ़ा लिखा था, नौकरी के लिए एक दफ्तर में गया। काम था साफ़-सफाई का। इंटरव्यू के बाद उसे एक-दो काम करने को कहा गया। लड़का गरीब था और उसे नौकरी की जरुरत भी थी तो उसने बड़ी ही लगन से वो काम किया।
काम देखने के बाद मालिक ने कहा, “शाबाश! मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आया। मैं तुम्हें ये नौकरी देता हूँ। तुम अपनी ईमेल आईडी मुझे दो मैं तुम्हें अपॉइंटमेंट लेटर भेज देता हूँ।”“लेकिन सर, मैंने तो ईमेल आईडी बनायीं नहीं।”“क्यों? आज कल तो सब ईमेल आईडी बना कर रखते हैं इसके बिना तो काम ही नहीं चलता।”
सर मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूँ। और कंप्यूटर चला सकने की मेरी औकात नहीं है। कृपया मुझे इस नौकरी पर रख लीजिये। “देखो, मैं मानता हूँ कि तुम इस नौकरी के काबिल हो लेकिन हम जॉइनिंग ईमेल से ही करवाते हैं। इसलिए तुम जा सकते हो। इतना सुन लड़का निराश होकर वहां से निकल गया। रास्ते में चलते-चलते उसने देखा कि एक औरत सब्जी वाले से टमाटर के बारे में पूछ रही थी और उसके पास टमाटर नहीं थे।
औरत बूढ़ी थी और बाजार जा नहीं सकती थी। तभी उसे एक ख्याल आया। उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो उसने देखा कि उसके पास $10 बचे थे। वह तुरंत बाजार गया और $10 के टमाटर ले आया। उसने वो टमाटर उस बूढ़ी औरत को बेच दिए। कुछ मुनाफा हुआ देख वह दुबारा बाजार गया और कुछ टमाटर और ले आया।
उन टमाटरों को लेकर वह घर-घर गया और उन्हें बेचने की कोशिश की। 2-4 घर घूमने के बाद एक घर में किसी ने $15 में टमाटर खरीद लिए। जब उसने ये देखा की एक बार टमाटर बेचने में उसे $15 का फ़ायदा हुआ है तो वह दुबारा गया और फिर से उन टमाटरों को बेच दिया। उस दिन से उसने अगले दिन टमाटर खरीदने के लिए थोड़े पैसे बचा लिए और बाकी के पैसों से खाने का इंतजाम किया।
उस दिन के बाद कुछ और दिनों तक वह इसी तरह टमाटर बेचता रहा। उसका काम काफी बढ़ चुका था। और आगे-आगे यह बढ़ता ही जा रहा था। टमाटर लाने के लिए पहले वह किराये पर गाड़ी लाने लगा। पैसे इकट्ठे कर उसने अपनी गाड़ी ली।
ज्यादा पैसे हो जाने पर उसने एक और गाड़ी ली और उसके लिए ड्राईवर भी रख लिया। ये कोई किस्मत का खेल नहीं था। यह सब उस लड़के की सूझ-बूझ और हिम्मत का परिचय था। कुछ ही सालों में उसने टमाटर के व्यापार से बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था। अब वह एक संपन्न व्यक्ति बन चुका था। थोड़े ही दिनों में उसकी शादी हो गयी।
शादी किए कुछ वर्षों बाद ही उसके घर में बच्चों की किलकारियां गूंजने लगी। अब उसे किसी भी चीज की परेशानी नहीं थी। सब चीजों से जब वह बेफिक्र हुआ तो उसने सोचा कि अब उसे अपना बीमा करवा लेना चाहिए। इससे यदि उसे कुछ हो गया तो भविष्य में उसके परिवार वालों को आर्थिक तौर पर कोई परेशानी न हो।
बीमा करवाने के लिए उसने बीमा एजेंट को फ़ोन किया। अगले दिन बीमा एजेंट उस व्यक्ति के पास आया। फॉर्म भरते समय सब कुछ भरने के बाद एक कॉलम खाली रह गया। यह कॉलम था ईमेल आईडी का। उस एजेंट ने पूछा, “सर आपकी ईमेल आईडी क्या है?” “सॉरी, मेरी कोई ईमेल आईडी नहीं है।” एजेंट को लगा कि वो मजाक कर रहा है।“सर क्या मजाक कर रहें हैं आप भी….”
“नहीं, मैंने कोई मजाक नहीं किया। सचमुच मेरी कोई ईमेल आईडी नहीं है।” “सर आपको पता है अगर आपने ईमेल आईडी का उपयोग किया होता तो आपका व्यापार और कितना आगे बढ़ सकता था। आपको पता है आज आप क्या होते?” उस व्यक्ति ने कहा “एक कंपनी में मामूली सफाई वाला होता, इस उत्तर से वो एजेंट सुन्न रह गया।
उसे कुछ समझ नहीं आया। तब उस व्यक्ति ने उसे अपनी कहानी सुनाई। जिसे सुन एजेंट को ये एहसास हुआ कि इंसान के अन्दर इच्छा हो तो वो कुछ भी हासिल कर सकता है। और इसके लिए जरुरी नहीं कि उसके पास सभी साधन मौजूद हों।
दोस्तों ऐसे ही परिस्थितियां हमारे जीवन में भी कई बार आती हैं। तब हमें लगता है कि काश अगर ये चीज हमारे पास होती तो आज हम कहीं और होते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। हमें अपना नजरिया बदलने की जरुरत है। हो सकता है वो चीज भगवान ने हमें इसलिए न दी हो कि हम उससे ज्यादा प्राप्त करने के काबिल हों।
परन्तु हम ज्यादा पाने का प्रयास न करके मौके तलाशते रहते हैं जो हमें आगे बढ़ा सके। एक बार खुद कोशिश तो करो। अपना नजरिया बदल कर तो देखो। उस विचार को अपने मन में तो लाओ। छोड़ दो रोना उस चीज के लिए जो तुम्हारे पास नहीं है और बदल दो दुनिया को उन चीजों से जो तुम्हारे पास है।
अगर तुम आज हार नहीं मानोगे तो आने वाला कल तुम्हारा होगा और यदि तुमने आज हार मान ली तो आने वाला कल कभी नहीं आ पाएगा। हालातों को दोष देना छोड़िये। कदम बढ़ाइये
चालाक बुजुर्ग आदमी की कहानी
एक दिन एक ट्रेन में एक बुजुर्ग आदमी यात्रा कर रहा था। ट्रेन के उसी डिब्बे में 5-6 नौजवान लड़के भी बैठे थे । तभी उस नौजवान लड़को के मन में कुछ शरारत करने का विचार आता है । ये विचार यह था की उन लोगो को ट्रेन की चैन खींचनी थी ।
फिर उन लड़को के दिमाग में एक ख्याल आता है की , अगर ट्रेन की चैन खीचेंगे तो हमें फाइन भरना पड़ेगा। उन में से एक लड़का बोलता है की कोई बात नहीं हम फाइन भर देंगे । सभी लोग 100 – 100 , 150 – 150 रूपये इकट्ठा करलो , जितना भी फाइन लगेगा हम भर देंगे। सभी ने पैसे इकठ्ठे कर लिए , पूरे मिलाकर 900 रूपये इकठ्ठे हुए , ट्रेन में सफर कर रहा वो बुजुर्ग ये सब देख रहा था ।
फिर उन लड़को के मन में आता है की क्यों न हम कुछ ऐसा करे की हम चैन भी खींच ले और हमें फाइन भी ना भरना पड़े। उसमें से एक लड़का बोलता है , हां मेरे पास एक अच्छा विचार है जिससे हम चैन भी खींच लेंगे और फाइन भी न भरना पड़ेगा । बाकि के सभी लोग उसे बड़ी उत्सुकता के साथ पूछने लगे ,
जल्दी बताओ ऐसा कौन सा विचार है तुम्हारे पास। उस लड़के ने कहा क्यों न हम ट्रेन की चैन खींच के उसका आरोप इस बूढ़े पे लगा दे । ऐसा करने से हमारे पैसे भी बच जायेगे और चैन खींचने का मजा भी आएगा । वो बुजुर्ग आदमी ये सब सुन रहा था । उसने इन लड़को से ये भी कहा की मुझे क्यों परेशान कर रहे हो। लेकिन ये सभी लड़के बोल रहे थे की नहीं हम तो परेशान करेंगे ।
इतने में एक लड़के ने चैन खींच दी । वो बुजुर्ग आदमी सोच रहा था की अब तो कुछ हो ही नहीं सकता है । वो चुप चाप बैठ गया। कुछ देर में ट्रेन के अधिकारी आये और उन्होंने पूछा की ये ट्रेन की चैन किसने खींची ? उन सभी लड़को ने कहा की इस बूढ़े आदमी ने चैन खींची । तभी वह अधिकारी ने उस बुजुर्ग से पूछा की आपने ट्रेन की चैन क्यों खींची ?
तभी उस बुजुर्ग ने उस अधिकारी के कहा की इन लड़को ने मेरे 900 रूपये छीन कर अपनी जेब में रख लिए हैं तो मैने परेशान होकर ट्रेन की चैन खींच दी। उस अधिकारी ने तुरंत लड़को की जेब चेक की और उन्हें 900 रूपये मिले जो की इस लड़को ने इकठ्ठे किये थे । उन्होंने वो 900 रूपये इस बुजुर्ग को दे दिए और उन सभी को आगे की कार्यवाही करने के लिए पोलिश स्टेशन में बुलाया। सभी लड़के अपने किये पे पछता रहे थे लेकिन अब पछताने का कोई फायदा नहीं था।
शिक्षा - हमें किसी बुजुर्ग आदमी से कुछ न कुछ सीखना चाहिए न की उन्हें परेशान करने के बारे में सोचना चाहिए । क्योकि हम जो काम आज कर रहे है वो ये काम कई साल पहले ही कर के बैठे हैं इसलिए हमें उनका आदर करना चाहिए ।
चिड़िया का घोसला की कहानी
एक बार की बात है गर्मी की छुट्टियों में एनी अपनी सहेलियों के साथ खेलने के बजाय सारा दिन पार्क में बैठी छोटे-छोटे पक्षियों को घोंसला बनाते देखती रहती थी। पार्क में तरह-तरह के पक्षी आते थे। गौरैया, कबूतर, कठफोड़वा, लवा और बुलबुल। एनी किसी भी पक्षी को देखते ही पहचान जाती थी,
क्योंकि उसकी मैम ने उसे सभी पक्षियों के सुंदर चित्र दिखाए थे और कहा था कि इन छुट्टियों में तुम सब पक्षियों की आदतें गौर से देखना और गरमी की छुट्टियों के बाद जब स्कूल खुलेगा तब तुम सबको पक्षियों पर एक लेख लिखने के लिए दिया जाएगा। सबसे अच्छे लेख पर जो किताब इनाम में दी जाने वाली थी, वह भी बच्चों को दिखाई गई थी।
मैम ने उन्हें जानवरों और पक्षियों की कहानियों वाली उस किताब के रंगीन चित्र भी दिखाए थे और कहानियां भी पढ़कर सुनाई थी। एनी को वह किताब इतनी पसंद आई थी कि उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि जैसे भी हो वह इस किताब को पाने के लिए मेहनत करेगी और इसलिए एनी अपनी छुट्टियां खेलने के बजाय पार्क में बैठकर पक्षियों की आदतों को जानने में गुजार रही थी।
एनी देखती कि पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए कितने धैर्य से छांटछांट कर पुरानी सुतली, घास, पत्तियां और घोंसले को आरामदेह बनाने के लिए पंख आदि जमा करते हैं । एनी का जी चाहता, कितना अच्छा होता कि मैं भी इन पक्षियों की कुछ मदद कर सकती। अचानक एनी को एक खयाल आया । इन दिनों ज्यादातर पक्षियों ने अपने घोंसले बना लिए थे, फिर भी कुछ पक्षी ऐसे थे जिनके घोंसले अभी तक तैयार नहीं हुए थे।
कुछ शरारती लड़कों ने पत्थर मारकर इनके घोंसले नष्ट कर दिए थे। एनी ने उन्हें गुस्सा कर रोकना चाहा। एनी ने सोचा-क्यों न मैं अपने हाथों से एक घोंसला बनाकर बगीचे के किसी पेड़ पर लटका दूं। हो सकता है कोई पक्षी वहां रहने आ जाए, आह, कितना अच्छा लगेगा जब पक्षी वहां अंडे देंगे और कुछ दिनों में घोंसला छोटे-छोटे पक्षियों से भर जाएगा।
पक्षियों की चहचहाहट से मेरे बगीचे में रौनक आ जाएगी, यह सोचकर एनी बहुत खुश हुई। अब तो एनी को अपने आप गुस्सा आ रहा था कि इतनी अच्छी बात उसे पहले क्यों नहीं सूझी ? कुछ मिनटों का ही तो काम होगा और बस घोंसला तैयार हो जायेगा। पक्षियों के चोंच से बने घोंसलों के मुकाबले मेरा यह घोंसला ज्यादा सफाई से बना हुआ होगा, एनी ने सोचा। अगले दिन एनी की मां यह देखकर बड़ी हैरान हुई कि एनी सारा दिन तिनके, कागज आदि ही बुनती रहती है।
कहां तो एनी ने सोचा था कि घोंसला बनाना तो कुछ मिनटों का ही काम है और कहां एनी को सारी शाम घोंसला बनाते- बनाते गुजर गई। घोंसला को टिकाने के लिए एनी ने बांस की कुछ तीलियां भी लगाई थी । अब वे तीलियां टिक नहीं रही थी। बेचारी एनी ने धागे की पूरी रील लगा दी। तब कहीं जाकर घोंसला इधर-उधर से बंध कर तैयार हुआ,
पर घोंसला अजीब ऊबड़खाबड़ सा बना था। यह तो पक्षियों को बहुत चुभेगा, यह सोचकर एनी,अपनी मां के पास गई और बोली, मां, यह घोंसला अंदर से कितना सख्त है, इसे जरा नरम बना दो न। मां ने एक छोटी कटोरी ली और घोंसले के अंदर उसे गोलमोल घुमाकर काफी हद तक उसे आरामदेह बना दिया । ऊबड़खाबड़ तिनके और कागज बैठ गए थे। अब एक छोटा सा घोंसला तैयार था जो न गोल कहा जा सकता था, न चौड़ा और न लंबा ।
चिड़ियाँ चोंच से घोंसला बनाती है, पर कितने सलीके और सफाई से बनाती हैं । हाथों से तो कभी ऐसे घोंसला बना ही नहीं जा सकता। सुबह एनी ने बड़ी शान से वह घोंसला बगीचे के एक पेड़ पर लटका दिया और खुद कुछ दूरी पर खड़ी इंतजार करती रही कि कोई पक्षी आकर उसे अपना घर बना ले। पर जब काफी समय गुजर गया और कोई पक्षी न आया तो एनी बड़ी निराशा हुई ।
अचानक उसने देखा लवा पक्षियों के एक जोड़े ने, वो घोंसले के ऊपर मंडरा रहा था, चोंच मार मारकर घोंसला तोड़फोड़ डाला । 'शैतान, पक्षी ' गुस्से से एनी बड़बड़ाई। एनी की आवाज सुनकर उसकी मां वहां आ गई। मां, देखो न, उन्हें मेरा घोंसला पसंद नहीं आया, मां भी वहीं खड़ी होकर पक्षियों की हरकतें देखने लगी। अचानक मां जोर से हंस पड़ी, देखो, एनी, ये पक्षी पहले घोंसले से तिनके चुन चुन कर एक नया घोंसला तैयार कर रहे हैं। हो सकता है ये लोग और किसी के बनाए घोंसलों में रहना पसंद न करते हों ।
मां, मैं जो लेख लिखूंगी , उसमें यह बात भी जरूर लिखूंगी, एनी बोली। एनी, पक्षियों ने घोंसला चाहे जिस कारण तोड़ा हो, पर वे तुम्हारा बड़ा एहसान मान रहे होंगे कि तुमने घोंसला बनाने का सारा सामान एक जगह जमा कर रखा है, मां ने कहा। मां, तुम ने एक बात पर गौर किया ? एनी ने मां से कहा, यह लवा अपना घोंसला झाड़ियों के अंदर बनाती है। हाँ, एनी, अभी तक तो मैंने यही देखा सुना था कि लवा अपना घोंसला पेड़ पर या घरों के रोशनदानों आदि में बनाती है ।
आज पहली बार मैं यह तरीका देख रही हूँ। एनी सारा दिन बगीचे में बैठी लवा पक्षियों को काम में जुटे देखती रहती। एनी की मौजूदगी मे पक्षी भी बुरा नहीं मानते थे। शायद उन्हें पता था कि वह उनकी मित्र है। जल्दी ही घोंसला छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भर गया । इसी बीच एनी को लवा पक्षी की एक और दिलचस्प आदत का पता चला।
आमतौर पर पक्षी उड़ते हुए आते हैं और सीधे अपने घोंसले पर ही उतरते हैं, पर लवा कभी ऐसा नहीं करती। वह हमेशा अपने घोंसले से थोड़ी दूरी पर उतरती है और फिर फुदक फुदक कर और थोड़ा इधर-उधर पता चले। घूम कर अपने घोंसले में जाती है । शायद वह नहीं चाहती कि किसी को उसी के घोंसले की जगह पता चले। छुट्टियों के बाद जब लेख प्रतियोगिता हुई तो एनी को प्रथम पुरस्कार मिला ।
इनाम वाली किताब हाथ में पकड़े एनी अपनी सहेलियों को बता रही थी, तुम्हें पता है, मैंने एक नहीं दो इनाम जीते हैं । एक तो यह किताब और दूसरा अपने बगीचे में छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भरा घोंसला ।
शिक्षा - इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि "कोई प्रतियोगिता जीतने से ज्यादा, दूसरों की मदद करके खुशी मिलती है । "
काम करने की इच्छा
एक बहुत अमीर व्यक्ति था। उसका नाम था मुकुल। मुकुल का अभी तक विवाह नहीं हुआ था। उसके माता-पिता उसके लिए उचित कन्या की तलाश में थे। वे मुकुल के लिए एक ऐसी पत्नी चाहते थे, जो सुंदर हो, स्वभाव की अच्छी हो और घर का काम-काज भी अच्छी तरह जानती हो। मुकुल के भी कुछ मित्र थे,
जिनकी बहनें विवाह-योग्य थीं। वह अपने मित्रों के घर मिलने जाता था, यह पता लगाने के लिए कि उन लडकियों का स्वभाव कैसा है ? वह अपने वहाँ आने का उद्देश्य किसी को बताता नहीं था, क्योंकि यदि वह अपने आने का उद्देश्य बता देता तो उसे सच्चाई का पता नहीं चल पाता।
एक दिन मुकुल अपने एक मित्र के घर गया। वहाँ पर बहुत सारा सूत रखा हुआ था। सूत उस धागे को कहते हैं, जिससे कपड़ा बुना जाता है। उसने देखा कि वहाँ एक चरखा रखा था, जिससे ढेर सारा सूत काता गया था। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना सारा सूत किसने काता है और अब इससे कपड़ा कौन बुनेगा!
उसने अपने मित्र की माँ से पूछा- 'माँ जी ये सूत कौन कात रहा है ? इतने सारे सूत का कपड़ा बुनने में तो निश्चित रूप से एक महीने से भी ज़्यादा समय लग जाएगा। उसके मित्र की माँ को थोड़ा अनुमान हो गया था कि मुकुल ऐसा क्यों पूछ रहा है ? उन्होंने सोचा कि मुकुल पर अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए।
इसीलिए उन्होंने कहा, “बेटा, मेरी बेटी ये सूत कातती है और इतने सूत को बुनने में उसे 10-15 दिन से ज़्यादा नहीं लगेंगे ! ' मुकुल को विश्वास नहीं हुआ।
उसने उस समय कुछ नहीं कहा। जाते समय जब कोई उसे देख नहीं रहा था, उसने उन्हीं की अलमारी की चाबी सूत के गट्ठर के नीचे छिपा दी। एक महीने के बाद वह फिर उसी मित्र के घर गया। तब उसके मित्र की माँ ने उसे एक अजीब किस्सा सुनाया।
उन्होंने मुकुल से कहा कि पिछले एक महीने से उनकी अलमारी की चाबी नहीं मिल रही हैं।उन्होंने पूरे घर में ढूँढ लिया है। लेकिन चाबी का कुछ पता नहीं चला। तब मुकुल उठा और उसने सूत का गट्ठर उठाया। चाबी ठीक उसी जगह रखी हुई थी, जहाँ एक महीना पहले उसने छोड़ी थी।
ऐसा लगता था कि पिछले एक महीने में सूत को हिलाया तक नहीं गया था। मुकुल ने चाबी अपने मित्र की माँ को दी और बोला, 'आप कहती थीं न कि आपकी बेटी 10-15 दिन में ही यह सारा सूत बुन सकती है। हो सकता है कि आपकी बेटी जब काम करती हो तो काफी जल्दी कपड़ा बुन लेती हो। लेकिन उसके लिए काम शुरू करना भी ज़रूरी है और मुझे लगता है कि उसे काम करना कुछ ख़ास पसंद नहीं है।
देखिए, पिछले एक महीने से इस गट्ठर को किसी ने हिलाया तक नहीं है। चाबी वहीं-की-वहीं पड़ी हुई है।' माँ कुछ नहीं बोली। मुकुल ने ठीक कहा था। काम आना ही काफी नहीं, काम को करने की इच्छा होना भी तो ज़रूरी है।
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