क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं :- आज के समय में, क्रेडिट कार्ड न केवल एक भुगतान उपकरण है, बल्कि यह आपको विभिन्न फायदे और इनाम भी देता है। जब आप क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो कई कार्ड कंपनियां आपको प्वाइंट्स, कैश बैक या अन्य पुरस्कार देती हैं। इन प्वाइंट्स को आप विभिन्न चीजों पर खर्च कर सकते हैं जैसे कि फ्लाइट टिकट, होटल स्टे, शॉपिंग, या यहां तक कि कैश बैक के रूप में भी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से। क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं 1. क्रेडिट कार्ड की कैटेगरी का चुनाव करें प्वाइंट्स कमाने के लिए सबसे पहले यह महत्वपूर्ण है कि आप जिस क्रेडिट कार्ड का उपयोग करें, वह आपके खर्चों के प्रकार के लिए उपयुक्त हो। उदाहरण के लिए, अगर आप यात्रा करना पसंद करते हैं, तो यात्रा संबंधित क्रेडिट कार्ड चुनें। अगर आप रेस्टोरेंट्स में अधिक खर्च करते हैं, तो ऐसे कार्ड का चयन करें जो रेस्टोरेंट खर्चों पर अधिक प्वाइंट्स ऑफर करता हो। कुछ सामान्य क्रेडिट कार्ड कैटेगरी हैं: ट्रैवल कार्ड – जो यात्रा संबंधित खर्चों पर अ...
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101+ Hindi Short Stories with moral for kids - 101 बच्चों के लिए छोटी कहानियाँ
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101+ Hindi Short Stories with moral for kids - 101 बच्चों के लिए छोटी कहानियाँ
1. गलत सलाहकार की कहानी
एक आदमी सड़क के किनारे समोसा बेचा करता था। अनपढ़ होने की वजह से वह अख़बार नहीं पढ़ता था। ऊँचा सुनने की वजह से रेडियो नहीं सुनता था और आँखे कमजोर होने की वजह से उसने कभी टेलीविजन भी नहीं देखा था।
इसके बाबजूद वह काफी समोसे बेच लेता था । उसकी बिक्री और मुनाफे में लगातार बढ़ोतरी होती गई । उसने और ज्यादा आलू खरीदना शुरू किया, साथ ही पहले वाले चूल्हे से बड़ा और बढ़िया चूल्हा खरीद कर ले आया।
उसका व्यापार लगातार बढ़ रहा था, तभी हाल ही में कॉलेज से बी. ए. की डिग्री हासिल कर चुका उसका बेटा पिता का हाथ बँटाने के लिए चला आया। उसके बाद एक अजीबो गरीब घटना घटी। बेटे ने उस आदमी से पूछा, "पिताजी क्या आपको मालूम है कि हम लोग एक बड़ी मंदी का शिकार बनने वाले हैं ?
" पिता ने जवाब दिया , "नहीं, लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ। बेटे ने कहा - " अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बड़ी गंभीर हैं । घरेलू हालात तो और भी बुरे हैं । हमे आने वाले बुरे हालत का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए
उस आदमी ने सोचा कि बेटा कॉलेज जा चुका है, अखबार पढ़ता है, और रेडियो सुनता है, इसलिए उसकी राय को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए । दूसरे दिन से उसने आलू की खरीद कम कर दी और अपना साइन बोर्ड नीचे उतार दिया। उसका जोश खत्म हो चुका था।
जल्दी ही उसी दुकान पर आने वालों की तादाद घटने लगी और उसकी बिक्री तेजी से गिरने लगी। पिता ने बेटे से कहा , "तुम सही कह रहे थे। हम लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं । मुझे ख़ुशी है कि तुमने वक्त से पहले ही सचेत कर दिया
शिक्षा - इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि अपने सलाहकार सावधानी से चुनिए, लेकिन अमल अपने ही फैसला पर करिए
2. बच्चे ने दी माँ बाप को एक सीख
किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहू के साथ रहता था । परिवार सुखी संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी ।बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था,
चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चुका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था। घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था ।
एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे । बेटा ऑफिस से आया था भूख ज्यादा थी सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहू और उसका एक बेटा भी खाने लगे । बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने को हुए थाली हाथ से छिटक गयी थोड़ी दाल टेबल पे गिर गयी ।
बहू बेटे ने घृणा द्रष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाने में लग गए। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरू किया तो खाना कभी कपड़ों पे गिरता कभी जमीन पर । बहू ने चिढ़ते हुए कहा – हे राम कितनी गन्दी तरह से खाते हैं मन करता है
इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं , बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो । उनका बेटा यह सब मासूमियत से देख रहा था । अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गयी ।
पिता की डबडबाती आँखे सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रहीं थी। बूढ़ा पिता रोज की तरह खाना खाने लगा , खाना कभी इधर गिरता कभी उधर । छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ देख रहा था । माँ ने पूछा क्या हुआ बेटे तुम दादा जी की तरफ क्या देख रहे हो और खाना क्यों नहीं खा रहे ।
बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला – माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और
आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करूँगा । बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहू दोनों काँप उठे शायद बच्चे की बात उनके मन में बैठ गयी थी क्योंकी बच्चा ने मासूमियत के साथ एक बहुत बढ़ा सबक दोनों लोगो को दिया था ।
बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पे खाने के लिए बिठाया और बहू भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ ना हो ।
शिक्षा - माँ बाप इस दुनियाँ की सबसे बड़ी पूँजी हैं आप समाज में कितनी भी इज्जत कमा लें या कितना भी धन इकट्ठा कर लें लेकिन माँ बाप से बड़ा धन इस दुनिया में कोई नहीं है।
3. कर्मों का भोग निश्चित है
एक सिद्ध आचार्य अपने शिष्यों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकले। कुछ देर चलने के बाद वे थकान निकालने बीच घने जंगल में ही रुक गये। इतने में आचार्य को कुछ आवाजे सुनाई दी। ध्यान से सुनने पर आचार्य को समझ आया कि यह कुछ लोगो के रोने की आवाज हैं।
उन्होंने शिष्यों को बोला- बालको ! सुनो ये आवाजे कहाँ से आ रही हैं ? तब शिष्य एक दुसरे का मुंह देखने लगे क्यूंकि उन्हें कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। फिर भी गुरु के आदेशानुसार उन्होंने थोड़ी दूरी पर आकार देखा। केवल आचार्य को एक गहरे, अँधेरे कुएँ से कुछ लोगो के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी।
आचार्य ने कुएँ में झाँक कर देखा तो उन्हें 5 लोग बहुत ही बुरी दशा में रोते हुए दिखाई दिए ,लेकिन शिष्यों को ना आवाज सुनाई दी और ना ही कुछ दिखाई दिया। तब आचार्य ने उन पाँच लोगो को मुस्कुराते हुए देखा और पूछा – भाई किन कर्मो का भोग रहे हो ? तब वे पाँचों और जोर-जोर से रोने लगे। तब आचार्य ने शिष्यों को बताया- यहाँ 5 प्रेत आत्मायें हैं।
यह सुनकर शिष्य डर गये। तब आचार्य बोले बालको डरों नहीं। तुम सभी इनसे ज्यादा शक्तिमान हो क्यूंकि तुम सब कर्मो से महान हो और ये सभी आज अपनी पिछली करनी का भोग रहे हैं। आज के समय में इनसे दुर्बल कोई नहीं हैं। तब शिष्य ने पूछा इन्होने ऐसा क्या किया हैं ?
तब पहली आत्मा ने उत्तर दिया कि वह पिछले जन्म में ब्राहमण था। भिक्षा मांगता था लेकिन उस भिक्षा को भोग विलास में खर्च करता था। दूसरे ने उत्तर दिया वह क्षत्रिय था और अपनी शक्ति का दुरुपयोग निर्बल, असहाय गरीबो पर करता था।
तीसरे ने उत्तर दिया कि वो बनिया था। बस खुद के फायदे की सोचता था और हमेशा मिलावट करके सामान बेचता था। जिस कारण कई लोग मारे गये। चौथे ने उत्तर दिया वह क्षुद्र था। बहुत आलसी और जिम्मेदारी से भागता था।
अपने माता-पिता को पीटता था और दिन रात नशा करता था । पाँचवें ने उत्तर दिया वह एक लेखक था । अश्लील कथाये लिखता था उसने समाज को वासना का पाठ सिखाया था। इस तरह वे सभी पापी अपने पापो को भोग रहे हैं। उन्होंने आचार्य से निवेदन किया। आप गुरु हैं आप दुनियाँ वालो को समझायें कि बुराई का रास्ता क्षण की ख़ुशी देता हैं लेकिन इसका दंड कई जन्मो तक अंधकार में भोगना पड़ता हैं।
शिक्षा - मनुष्य को कर्मो का फल भोगना ही पड़ता हैं।
4. भ्रष्ट कर्मचारी- अकबर बीरबल की कहानी
अकबर बादशाह का दरबार लगा हुआ था। दरबारी अपने-अपने स्थानों पर बैठे हुए थे। बीरबल का आसन अलग से दिखाई दें रहा था। तभी दो सिपाही एक आदमी को लेकर हाजिर हुए। उनमें से एक ने बताया,
जहाँपनाह, इस आदमी को रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया है। अकबर ने पूछा, इस आदमी को किस काम पर लगाया था ? जहाँपनाह! यह अनाज के गोदाम में काम करता है। सिपाही बताया। बादशाह अकबर ने उसे हवालात में बंद करने का आदेश दिया और बीरबल से बोले, बीरबल, तुम्हारी क्या राय है !
क्या इंसान को उसका पद भ्रष्टचारी बना देता है ? बीरबल ने निवेदन किया, जहाँपनाह! मैं ऐसा नहीं समझता। मेरा विचार है कि भ्रष्टाचारी इंसान चाहे किसी भी पद पर हो, वह रिश्वत लेने का रास्ता निकाल ही लेता है।
तभी एक दरबारी ने खड़े होकर कहा, गुस्ताखी माफ हो जहाँपनाह ! मैं बीरबल की इस बात से सहमत नहीं हूँ। ऐसे सैकड़ों काम हैं जहाँपनाह, जिन्हें करते हुए रिश्वत लेना संभव नहीं है। बीरबल ने उस दरबारी से पूछा, पर एक-आध नाम तो बताइए वह कौन-सा काम है ?
दरबारी बोला, जैसे। ...... जहाँपनाह जिसे गिरफ्तार किया गया है, उसे यमुना के किनारे बैठकर लहरें गिनने का काम सौंप दीजिए! मेरा दावा है, इस काम को करते हुए वह एक दमड़ी की भी रिश्वत नहीं ले सकेगा। इस पर बीरबल ने कहा, जहाँपनाह! कोई भ्रष्ट कर्मचारी सुधर जाए तो अच्छा ही है।
किन्तु मुझे नहीं लगता, यह तरकीब कुछ काम करेगी। दरबारी ने जोर देते हुए कहा, जरूर काम करेगी। आजमाकर तो देखिए। बादशाह अकबर ने पूरी बात ध्यान से सुनी और उस कर्मचारी को नए काम पर लगा दिया।
वह कर्मचारी सुबह से शाम तक यमुना के किनारे पर बैठा रहता और यमुना में उठने वाली लहरों की गिनती करता रहता। धीरे-धीरे एक सप्ताह बीत गया। एक दिन दरबारी ने बीरबल से पूछा, बीरबल सात दिन हो गए हैं। अब तक उस आदमी के बारे में कोई शिकायत नहीं मिली। बीरबल ने धीरे से हाँ कहा और चुप हो गए।
किन्तु उन्हें विश्वास नहीं था कि वह आदमी सुधर गया होगा। उन्होंने बादशाह से निवेदन किया, जहाँपनाह! क्यों न, वहाँ चलकर खुद देखा जाए। अकबर ने कहा, हाँ बीरबल, कल सुबह हम वहाँ खुद जाएँगे। दूसरे दिन बीरबल और बादशाह अकबर ने व्यापारी का वेश बनाया।
उन्होंने एक नाव ली और यमुना के किनारे पर चल दिए। वह कर्मचारी यमुना के किनारे बैठकर अपने रजिस्टर में कुछ लिख रहा था। तभी बीरबल की नाव किनारे के पास पहुंची। कर्मचारी वहीं से चिल्लाया, ऐ तुम लोग क्या कर रहे हो ? व्यापारी बने हुए बीरबल ने कहा, भैया हम अपनी नाव चला रहे हैं। आपको कोई परेशानी हुई क्या ? वह आदमी वही से चिल्लाया, क्या तुम्हें पता नहीं है कि बादशाह सलामत ने मुझे यमुना की लहरों का हिसाब रखने के लिए नियुक्त किया है।
तुमने मेरा सारा हिसाब गड़बड़ कर दिया। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। बीरबल बोले, सचमुच हमसे भूल हो गई है। हम माफी माँगते हैं। कर्मचारी बोला, मैं ऐसे माफ नहीं कर सकता। हाँ अगर तुम लोग पचास अशर्फियाँ दो तो माफ कर सकता हूँ। यह तो बहुत ज्यादा हैं भैया।
कुछ तो कम करो। बीरबल बोले। नहीं इससे कम पर समझौता नहीं हो सकता। कर्मचारी बोला। तभी व्यापारी के कपड़े हटाकर बादशाह अकबर वहाँ आ गए। उन्होंने वहीं से कहा, नहीं हम पचास की जगह सौ देंगें। लेकिन अशर्फियाँ नहीं। सौ कोड़े। कर्मचारी ने ध्यान से व्यापारी की तरफ देखा। अब उसे अपनी भूल का पता चला।
वह बादशाह के पैरों में गिर पड़ा और बोला, माफ करें जहाँपनाह! मैं आपको पहचान न सका। बादशाह ने बीरबल की ओर देखा और कहा, तुम ठीक कहते थे बीरबल! कोई भी काम हो, भ्रष्ट अफसर उसमें पैसा ऐंठने का मौका निकाल ही लेता है। जी जहाँपनाह! आप ठीक कहते हैं। बीरबल ने धीरे से कहा और चुप हो गए।
5. पैरों के निशान की कहानी
जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है,” प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये , मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते है…. मैं वहाँ नहीं जाना चाहता …” और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है ।
भगवान स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्व समझाते हैं , बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है।” ठीक है प्रभु, अगर आपकी
यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही , पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा। ” , बालक भगवान से कहता है।भगवान बोले - बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ? बालक बोला - आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे। भगवान बोले- अवश्य, ऐसा ही होगा।
बालक बोला - पर पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं , भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं भगवान बोले - जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हे दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाई देंगे , उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ। फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है। जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान से हुए वार्तालाप को भूल जाता है।
पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं। परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाई दे रहे थे ,
यह देख वह बहुत दुखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नही निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी। मरने के बाद वह भगवान के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला , ” प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे , पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया ?”
भगवान मुस्कुराये और बोले , ” पुत्र ! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हे अपनी गोद में उठा लिया , इसलिए उस समय तुम्हे सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे। “
शिक्षा - दोस्तों, बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है , कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है , पर जब बाद में हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नही हुआ ,क्योंकि शायद यही
वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करता है। अनजाने में हम सोचते हैं कि वो हमारा साथ नहीं दे रहा पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होता है।
6. गरीब और अमीर की बारिश की कहानी
एक गांव में एक किसान रहता था, जिसका नाम रामू था, उसके घर के बाहर ही उसका एक छोटा सा खेत था। उसका पूरा परिवार उसके साथ खेत में काम करने में मदद किया करता था। रामू के बच्चे सब्जियों को पानी भी दे दिया करते थे। इस बार रामू के खेत की फसल बहुत अच्छी थी,
वह अपनी पत्नी से कहता है, की इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी है, और अगर सब कुछ सही रहा तो हम इस बार फसल बेचकर अपना पक्का घर बना लेंगे। इतना कहने के बाद वह अपनी पत्नी सरला से कहता है, की मै बाजार जा रहा हूँ कुछ सब्जियों और धन को बेचने के लिए, तुम खेत में कीटनाशक दवाइयां छिड़क देना।
इतना कहने के बाद वह बाजार चला जाता है, और इधर उसकी पत्नी और बच्चे खेत का सारा काम खत्म कर देते है। जब रामू बाजार से बापिस आता है, तो वह बहुत खुश होता है, और अपनी पत्नी से कहता है, कि हमारी सब्जियां उच्च गुणवत्ता वाली है, हमें इस बार बाजार में बहुत अच्छे दाम मिलेंगे।
बाजार में जल्दी से सब्जियां तोड़कर बेचनी होगी। यह सुनकर उसकी पत्नी ने कहा ठीक है, हम कल ही सारी सब्जियां तोड़कर बाजार में बेचने के लिए तैयार कर देंगे। इतना कहने के बाद वह अपने परिवार के साथ ख़ुशी खुशी सो जाते हैं, लेकिन रात में अचानक बारिश होने लगती है।
बारिश होने की वजह से रामू बहुत दुखी होता है, और वह अपनी पत्नी को उठाता है, और कहता है, सरला यह देखो कितनी तेज बारिश हो रही है। सरला भी बहुत दुखी हो जाती है, और वह कहती है, हे भगवान हमारी फसल का क्या होगा। दोनों पति पत्नी भगवान से बारिश बंद होने के लिए प्रार्थना करने लगे। लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
यहाँ तक की कुछ देर बाद ओले भी पड़ने लगे, पूरे खेत में बारिश का पानी भर गया। इससे वह दोनों बहुत परेशान थे, रामू ने कहा सरला बारिश का पानी बढ़ता जा रहा है, धीरे- धीरे यह पानी हमारे घर में भी भरने लगेगा, और हवा की वजह से हमारे घर का छप्पर भी टूटने लगा है।
दोनों बहुत परेशान थे किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, की ऐसी परेशानी में उन्हें क्या करना चाहिए। सरला ने अपने दोनों बच्चो को उठाया और अपने पति के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का फैसला किया। जब वह अपने घर से निकले तो देखा पहले से ही बारिश के पानी की वजह से कई घर टूट चुके थे। पूरे गांव में पानी भर चुका था, और गांव के अन्य लोग भी अपना सामान सर पर रखकर गांव से निकल रहे थे। पूरा गांव दुखी था,
सभी एक दूसरे की मदद कर रहे है। सभी गांव वाले गांव के बाहर पुल के ऊपर आकर रुक गए।कुछ समय बाद बारिश रुक गयी, और अगले दिन सुबह सरकारी लोग गांव में फसे लोगो के लिए खाना लेकर आये। गांव वाले खाने को देखकर कर्मचारियों से रामू को भी खाने के कुछ पैकेट मिल गए थे। रामू ने वह खाने के पैकेट अपने बच्चो को खिला दिए, और दोनों पति पत्नी भूखे रहे। अब गांव वालो को कुछ राहत सी महसूस होने लगी, अब उन्हें पूरी उम्मीद थी, की वह अब अपने गांव में लौट जाएंगे।
लेकिन तभी थोड़ी देर बाद फिर से बारिश होना शुरू हो गयी। इस बार बारिश बहुत देर तक हुई। पानी बढ़ता जा रहा था। जिसकी वजह से गांव में राहतकर्ता भी खाना लेकर नहीं आये थे। रामू ने कहा की इस बार हमारे गांव में सरकारी गाड़ियां खाना लेकर नहीं आएगी। मै खाना लेने के लिए गांव से बाहर जाता हूँ। कुछ देर बाद रामू खाना लेकर सरला और बच्चो के पास पंहुचा, लेकिन रामू के शरीर पर बहुत चोट के निशान बने हुए थे।
जिन्हे देखकर सरला घबराते हुए बोली यह सब कैसे हुआ, इस पर रामू ने कहा की पास वाले गांव में सरकार मुफ्त में खाना बाँट रही थी। जिसकी वजह से वहां पर बहुत भीड़ थी, मुझे खाने लेते हुए भीड़ में यह चोट लग गयी। इतना सुनकर सरला रोने लगी, और कहने लगी जो हाथ अनाज उगाते थे आज वह खुद अनाज के लिए परेशान है। यह कैसी स्तिथि आ चुकी है,
रामू ने सरला को समझाया और कहा की तुम घबराओ मत सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा। इसके बाद रामू ने अपने बच्चो को खाना दिया, लेकिन बच्चो ने कहा आप भी इसमें से हमारे साथ खाना खाइये, क्योकिं आप दोनों ने कल से कुछ भी नहीं खाया है। बच्चो ने सरला और रामू के साथ खाना खाया। यह देखकर सभी को बहुत अच्छा लगा। सभी का हँसता खेलता परिवार पूरी तरह से परेशान था।
इसके बाद धीरे धीरे बारिश कम होने लगी। और सभी गांव वाले अपने अपने घर लौटने लगे। जब रामू अपने परिवार के साथ घर पंहुचा तो देखा, रामू का पूरा घर टूट चुका था। इस पर सरला बहुत ज्यादा दुखी थी, रामू ने कहा की हम घर फिर से बना लेंगे। सरला ने कहा और खाने के लिए कहाँ से लाएंगे। बच्चो ने कहा की अभी भी कुछ सब्जियां खेत में बची हुई है, हम उनको तोड़कर ले आते है।
बच्चे सब्जियां तोड़ने में लग जाते हैं, रामू और सरला अपने घर को फिर से बनाने में लग जाते हैं। तभी एक व्यक्ति अपने घर की ओर आता हुआ दिखाई देता है, वह बोलता है, की मै सरकार की तरफ से आया हूँ। मुझे यह देखना है कि आपका इस बारिश की आपदा में कितना नुक्सान हुआ है, क्योकिं सरकार आपको आपके नुक्सान का पूरा मुवाबजा देगी, और आपको एक पक्का घर भी बनाकर देगी। ऐसा सुनने के बाद सरला को बहुत अच्छा लगा, रामू और सरला ने अपने बारे में सारी इनफार्मेशन उस सरकारी व्यक्ति को दे दी।
वह सारी जानकारी लेने के बाद वहां से चला गया। और कुछ सरकारी कर्मचारी गांव में राशन देने के लिए आये। राशन लेने के बाद रामू और गांव वालो ने उन कर्मचारियों को बहुत बहुत धन्यवाद दिया। कर्मचारियों ने कहा आप एक किसान है, जो की पूरे देश के लिए अनाज उगाते है, आपकी मदद करना हमारा कर्तव्य है। इतना कहने के बाद वह गांव से चले गए।
इसके कुछ दिन बाद रामू के गांव में सरकार की बहुत सारी गाड़ियां आयी, और जिन लोगो के भी बारिश की वजह से घर टूटे थे, उन सभी लोगो को मजबूत और पक्के घर बनाकर दिए गए। आज सरला की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे। इस पर सरला ने कहा की हे भगवान मै अनजाने में आपको बहुत कुछ बुरा भला कहा मुझे इसके लिए माफ़ कर देना। भगवान को धन्यवाद कहते हुए वह बहुत खुश हुई।
रामू के परिवार को अंत में पक्का मकान भी मिल गया और आर्थिक मदद भी मिल गयी। इसके बाद उन्होंने फिर से फसल उगाई। हालाकिं बारिश का कहर रामू और पूरे गांव वालो पर बहुत वर्षा लेकिन अंत में सब कुछ ठीक हो गया और सभी गांव वाले बहुत खुश थे।
शिक्षा - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, की जब अमीर लोग अपने पक्के घरो में बारिश का आनंद लेते है। वहीं एक गरीब किसान अपने खेतो को बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना करता है। आज भी कई गांव ऐसे है, जहाँ पर बारिश के कारण लोगो के घर टूट जाते है।
7. लकड़हारा और कुल्हाड़ी की कहानी
एक समय की बात है, एक गांव में एक लकड़हारा रहता है, जो की जंगल से लकड़ियों को काटकर उन्हें बाजार में बेचकर पैसे कमाता था, जो भी पैसे उसे लकड़ी बेच कर मिलते थे, वह उसी से अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। एक दिन वह जंगल में रोज की तरह लकड़ी काटने के लिए गया,
और नदी किनारे एक वृक्ष से लकड़ी काटने लगा। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में गिर गयी। इससे लकड़हारे को बहुत दुःख हुआ, और वह नदी में कुल्हाड़ी ढूंढ़ने का प्रयत्न करने लगा।
लेकिन उसे नदी में अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। इस बात से लकड़हारा बहुत ज्यादा दुखी था, और वह नदी के किनारे बैठकर रोने लगा। जब वह नदी किनारे रो रहा था, तो लकड़हारे की आवाज सुनकर नदी से भगवान प्रकट हुए। भगवान जी ने लकड़हारे से पूछा की तुम क्यों रो रहे हो, इस पर लकड़हारे ने शुरू से अंत तक की पूरी कहानी भगवान को सुनाई।
लकड़हारे की कहानी सुनकर भगवान को उस पर दया आ गयी, और उन्होंने लकड़हारे की मेहनत को देखते हुए उसकी मदद करने की योजना बनाई। इसके बाद भगवान जी नदी में गायब हो गए, और एक सोने की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। सोने की कुल्हाड़ी देखकर लकड़हारा बोला “हे भगवान” यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है,
इस बात को सुनकर भगवान फिर से नदी में गायब हो गए और इस बार एक चांदी की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए बोले यह लो तुम्हारी कुल्हाड़ी, इस बार भी लकड़हारे ने यही कहा की यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है, और मुझे सिर्फ मेरी कुल्हाड़ी चाहिए। भगवान ने फिर से नदी में गायब होकर एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और लकड़हारे को देते हुए कहा ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी।
इस बार लकड़हारे के चेहरे पर मुस्कान थी, क्योकिं यह कुल्हाड़ी लकड़हारे की थी। उसने कहा ये मेरी कुल्हाड़ी है। भगवान ने लकड़हारे की ईमानदारी से खुश होकर उसे सोने और चांदी की दोनों कुल्हाड़ियाँ भी उसी लकड़हारे को दे दी। इससे लकड़हारा ख़ुशी ख़ुशी घर चला गया।
शिक्षा - लकड़हारे की इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है, हमें हमेशा अपनी ईमानदारी पर ही रहना चाहिए। क्योकिं जीवन में ईंमानदार व्यक्ति को कोई भी नहीं हरा सकता है।
8. मूर्ख कछुआ की कहानी
एक तालाब में एक कछुआ रहा करता था। वह कछुआ बहुत बातूनी था। दूसरों से बात करते समय बीच-बीच में टोका-टोकी करना उसकी आदत थी। एक दिन दो हंस उस तालाब में उतरे। उन हंसों का नाम संकट और विकट था।
उन्हें तालाब के आस-पास का वातावरण बहुत अच्छा लगा। उसके बाद से वे प्रतिदिन वहाँ आने लगे। कछुआ उन्हें प्रतिदिन देखता। एक दिन उसने उन दोनों हंसों से बात की वे उसे दोनों भले और सज्जन लगे। शीघ्र ही उनमें गहरी मित्रता हो गई। हंस रोज़ तालाब में आते और कछुए से मिलते।
फिर तीनों बहुत देर तक नई - नई प्रकार की बातें करते। हालांकि बातों के बीच कछुए की टोका-टाकी ज़ारी रहती। किंतु सज्जन हंस इसका बुरा नहीं मानते। एक बार उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा। नदी-तालाब सूखने लगे। वह तालाब
भी सूखने लगा, जहाँ कछुआ रहता था।
एक शाम जब हंस उससे मिलने आये, तो उसे बताया कि वे दोनों वह स्थान छोड़कर 50 कोस दूर स्थित एक अन्य झील पर जा रहे हैं, जो पानी से भरा है। यह सुनकर कछुआ दु:खी हो गया और आँखों में आंसू भरकर बोला, “मित्रों! कुछ ही दिनों में ये तालाब सूख जायेगा। मेरा मरण तो निश्चित है। किंतु इस बात से अधिक दु:ख मुझे इस बात का है कि अपनी अंतिम घड़ी में मैं अपने परम मित्रों को देख नहीं पाऊंगा।
कछुए की इस बात पर दोनों हंस उदास हो गए। उन्हें कछुए से सहानु भूति थी। वे बोले, “मित्र हम तुम्हें यहाँ अकेले छोड़कर नहीं जायेंगे। हम तुम्हें भी अपने साथ ले जायेंगे। हमारी मित्रता और साथ सदा बना रहेगा।”“लेकिन ये कैसे संभव है मित्रों? तुम दोनों तो उड़कर चले जाओगे। मुझे तो धीरे-धीरे चलकर उस स्थान तक पहुँचने में महीनों लग जायेंगे।
हो सकता है कि बीच रास्ते में ही मेरे प्राणपखेरू उड़ जायें। तुम दोनों चले जाओ मैं तुम्हें याद करके अपने दिन व्यतीत कर लूंगा।” हंसों ने कछुए की बात नहीं मानी और उसे अपने साथ
ले जाने का उपाय सोचने लगे । सोचते- सोचते उन्हें एक उपाय सूझ ही गया और वे प्रसन्न हो गए. उन्होंने तय किया कि वे बांस की एक लकड़ी लेकर आयेंगे।
कछुआ उस लकड़ी के मध्य भाग को अपने मुँह से पकड़ेगा और वे दोनों उस लकड़ी के एक-एक सिरे को अपनी चोंच में दबा लेंगे. इस तरह वे कछुए को लेकर उड़ते हुए उस झील तक पहुँच जायेंगे.” कछुआ भी यह उपाय सुनकर प्रसन्न हुआ. अगले दिन हंस लकड़ी लेकर कछुआ के पास आये और उसे लकड़ी के मध्यभाग को मुँह से पकड़ने को कहा।
हंस कछुए की बातूनी आदत से भली-भांति परिचित थे. इसलिए उन्होंने उसे समझाया कि जब तक वे झील तक नहीं पहुँच जाते, उसे मौन रहना है. अन्यथा वह नीचे गिर पड़ेगा. कछुए ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह मौन धारण करके रखेगा.
इसके बाद दोनों कछुए ने दृढ़तापूर्वक लकड़ी के मध्यभाग को पकड़ लिया. हंस लकड़ी के दोनों सिरों को चोंच में दबाकर आकाश में उड़ने लगे. उड़ते-उड़ते वे एक कस्बे के ऊपर से गुज़रे. तभी किसी ने आकाश के उस विचित्र नज़ारे को देख
लिया।
वह दूसरे लोगों को बताने लगा, “देखो देखो आकाश में कछुआ उड़ रहा है.” एक मुँह से दूसरे मुँह होते हुए ये बात पूरे कस्बे में फ़ैल गई. लोग घरों के बाहर निकल आये और शोर मचाने लगे. यह शोर सुन कछुए से रहा न गया और वह हंसों से बोला, “ये लोग हमें देख इतना शोर क्यों मचा रहे हैं?”बोलते ही कछुए के मुँह से लकड़ी छूट गई और वह सीधे जमीन से आ टकराया. जमीन से टकराते ही उसके प्राणपखेरू उड़ गए.
शिक्षा - बुद्धिमान व्यक्ति किसी कार्य के बारे में योजना बनाकर उस पर पूरा अमल करते हुए सफ़लता प्राप्त करते हैं. अन्यथा योजना पर टिके न रहने का दुष्परिणाम भोगना पड़ता है.
9. मुकाबले की भावना की कहानी
तिलक के सभी साथियों के पास अपनी - अपनी साईकिल थी। वे अकसर किसी न किसी मित्र के साईकिल के पिछले हिस्से पर बैठकर धूम मचाते हुए स्कूल जाते थे। उनका रोज का यही काम था। तिलक सदा विजय के पीछे बैठा करता था।
एक दिन विजय ने मजाक में उसेसे कहा, देखो तिलक, आज मेरे साईकिल में हवा नहीं है, इसलिए तुम पैदल ही आ जाना। यह कहकर वह आगे बढ़ गया। तभी तिलक ने देखा कि विजय की साईकिल के पहियों में पूरी हवा थी। उसे बड़ा गुस्सा आया ।
वह सोचने लगा शायद विजय को अपने पास साईकिल होने का घमंड हो गया है। थोड़ी दूर जाकर तिलक ने देखा की विजय साईकिल रोके खड़ा है। यह देख तिलक रुका नहीं। वह उसके पास से होता हुआ गुजरा तो विजय ने पीछे से आवाज दी,
अरे तिलक, ठहरो तो। तुम तो पैदल ही जा रहे हो। मैंने तो मजाक किया था। आओ, बैठो मेरे पीछे। तिलक नहीं रुका। वह गुस्से में जो था। उस दिन वह पैदल ही स्कूल गया। शाम को घर आते ही उसने अपने पापा से कहा, पापा, मुझे भी साइकिल ला दीजिये । मेरे सभी साथी अपनी-अपनी साईकिल पर स्कूल जाते हैं। चार पांच दिनों के बाद तिलक के पापा ने उसे नई साईकिल ला दी। अब तिलक और विजय दोनों अकेले-अकेले अपनी - अपनी साईकिल पर स्कूल जाने लगे।
तिलक के मन में अब भी विजय के लिए गुस्सा था, इसलिए वह विजय को नीचा दिखाने के चक्कर में रहने लगा। एक दिन तिलक ने मन ही मन यह फैसला कर लिया कि उसे अपनी साईकिल सदा विजय से आगे रखनी चाहिए। दो तीन दिन बाद
विजय भी उसकी इच्छा को भांप गया।
अब जब यह टोली स्कूल जाती तो तिलक और विजय में होड़ सी लग जाती। दोनों ही अपनी साईकिल एक दूसरे से आगे निकालने की कोशिश में रहते। कभी तिलक आगे निकल जाता तो कभी विजय । कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा। एक दिन सभी मित्र स्कूल से घर आ रहे थे । वर्षा के कारण सड़क पर काफी फिसलन थी । जब वे सड़क का मोड़ मुड़ने लगे तो विजय से आगे रहने की कोशिश में तिलक की साईकिल का पहिया फिसल गया और वह धड़ाम से गिर गया।
तिलक को गिरते देखकर सभी मित्र रुक गए। विजय ने भी अपनी साईकिल रोकी । उसने आगे बढ़ कर तुरंत तिलक को उठा लिया । उसे अधिक चोट तो नहीं आई थी फिर भी कुछ जगह से खाल छिल गई थी। यह देखकर विजय ने कहा, यह सब हमारी मुकाबले की भावना के कारण ही हुआ है।
यदि हम दोनों में एक दूसरे से आगे रहने की होड़ नहीं होती तो तुम्हें यह चोंट नहीं लगती। आज के बाद सदा तुम ही आगे रहना । मैं तुम्हारे पीछे ही रहा करूँगा । विजय की बात सुनकर तिलक का मन पसीज गया। शर्मिंदा होकर उसने कहा, नहीं विजय गलती तो मेरी ही थी। मेरे मन में ही यह भावना आई थी कि मैं सदा तुमसे आगे रहकर तुम्हें नीचा दिखाऊं। मैं यह भूल गया था कि सड़क पर मुकाबले की भावना रखकर साईकिल नहीं चलानी चाहिए। अब मेरी आँखे खुल गई हैं । मुझे माफ कर दो ।
शिक्षा - इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि " सड़क पर मुकाबले की भावना से साईकिल या दूसरा वाहन नहीं चलाना चाहिए । "
10. चूहेदानी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है रहमान चाचा के यहाँ एक चूहा रहता था. हर दिन की तरह उस दिन भी बाज़ार से गाँव लौटते वक़्त चाचा झोले में कुछ सामान लेकर आये. झोले से बिस्कुट का पैकेट निकालते देखकर चूहे के
मुंह में पानी आ गया, लेकिन ये क्या अगले ही पल उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई, चाचा आज बाकी सामान के साथ एक चूहेदानी भी खरीद कर लाये थे. चूहा फ़ौरन भाग कर मुंडेर पर बैठे कबूतर के पास गया और घबड़ाकर कहने लगा – ” यार, आज
बड़ी गड़बड़ हो गई, चाचा मुझे मारने के लिए चूहे दानी लेकर आये हैं, मेरी मदद करो किसी तरह इस चूहेदानी को यहाँ से गायब कर दो!” कबूतर मुस्कुराया और बोला, ” पागल हो गया है, भला मुझे चूहेदानी से क्या खतरा, मैं इस चक्कर में नहीं पड़ने वाला. ये
तेरी समस्या है तू ही निपट.” चूहा और भी निराश हो गया और मुर्गो के पास हांफता हुआ पहुंचा, ” भाई मेरी मदद करो, चाचा चूहेदानी लेकर आये हैं….” मुर्गे दाना चुगने में मस्त थे. चूहे से कन्नी काटते हुए बोले, “अभी हमारा खाने का टाइम है, तू बाद में
आना.” अब चूहा भागा-भागा बकरे के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई. बकरा जोर-जोर से हंसने लगा, “यार तू पागल हो गया है, चूहेदानी से तुझे खतरा है मुझे नहीं. और तेरी मदद करके मुझे क्या मिलेगा? मैं कोई शेर तो हूँ नहीं जो शिकारी मुझे जाल में
फंसा लेगा और तू मेरा जाल कुतर कर मेरी जान बचा लेगा!” और ऐसा कहकर बकरा जोर-जोर से हंसने लगा. बेचारा चूहा उदास मन से अपने बिल में वापस चला गया. रात हो चुकी थी, चाचा और उनका परिवार खा-पीकर सोने की तैयारी कर रहे थे तभी
खटाक की आवाज़ आई. चाचा की छोटी बिटिया दौड़कर चूहेदानी की ओर भागी, सभी को लगा कि कोई चूहा पकड़ा गया है. कबूतर, मुर्गे और बकरे को भी लगा कि आदत से मजबूर चूहा खाने की लालच में मारा गया. लड़की पलंग के नीचे हाथ
डालकर चूहेदानी खींचेने लगी, तभी हिस्स की आवाज़ आयी…. ये क्या चूहेदानी में चूहा नहीं बल्कि एक ज़हरीला सांप फंस गया था और उसने बिजली की गति से फूंफकार मारते हुए बिटिया को डस लिया. बिटिया की चीख सुन सब वहां इकठ्ठा हो
गए. रहमान चाचा पड़ोस में रहने वाले ओझा के यहाँ भागे. ओझा ने कुछ तंत्र-मन्त्र किया और बिटिया के हाथ पर एक लेप लगाते हुए बोले, बच्ची अभी खतरे से बाहर नहीं है, मुझे फ़ौरन कबूतर का कंठ लाकर दो मैं उसे उबालकर एक घोल तैयार करूँगा
जिसे पीकर यह पूरी तरह स्वस्थ हो जायेगी. ये सुनते ही रहमान चाचा कबूतर को पकड़ लाये. ओझा ने बिना देरी किये कबूतर का काम तमाम कर दिया. बिटिया की हालत सुधरने लगी. अगले दिन कई नाते – रिश्तेदार बिटिया का हाल-चाल जानने
के लिए इकट्ठा हो गए. चाचा भी बिटिया की जान बचने से खुश थे और इसी ख़ुशी में उन्होंने सभी को मुर्गा खिलाने की ठानी. कुछ ही घंटों में मुर्गा का भी काम तमाम हो गया. ये सब देखकर बकरा भी काफी डरा हुआ था पर जब सभी मेहमान चले गए
तो वो भी बेफिक्र हो गया. पर उसकी ये बेफिक्री अधिक देर तक नहीं रह पाई. चाची ने रहमान चाचा से कहा, “अल्लाह की मेहरबानी से आज बिटिया हम सबके बीच है, जब सांप ने काटा था तभी मैंने मन्नत मांग ली थी कि अगर बिटिया सही-सलामत
बच गई तो हम बकरे की कुर्बानी देंगे. आप आज ही हमारे बकरे को कुर्बान कर दीजिये. इस तरह कबूतर, मुर्गे और बकरा तीनो मारे गए और चूहा अभी भी सही-सलामत था.
शिक्षा - दोस्तों, इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि जब हमारा दोस्त या पडोसी मुसीबत में हो तो हमें उसकी मदद करने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए. किसी समस्या को दूसरे की समस्या मान कर आँखें मूँद लेना हमें भी मुसीबत में डाल सकता है. इसलिए मुश्किल में पड़े मित्रों की मदद ज़रूर करें, ऐसा करके आप कहीं न कहीं खुद की ही मदद करेंगे.
11. " विद्या " एक अमूल्य धन की कहानी
एक बार एक राजा जंगल में शिकार करने गया । राजा अत्यंत बलवान था अतः अकेले ही शिकार पर जाता था। शिकार करते-करते शाम होने को आई। अचानक आसमान में बादल घिर आए और तेज़ बरसात होने लगी। इतने में सूरज भी ढल गया। अंधेरे में राजा रास्ता भटक गया
और भूख प्यास से बिहाल होकर एक स्थान पर बैठ गया। राजा बहुत चिंतित था कि तभी देखा सामने से तीन बालक चले आ रहे हैं। राजा ने तीनों को अपने पास बुलाकर कहा मै बहुत भूखा हूँ प्यास भी लगी है, रास्ते से भटक गया हूँ क्या तुम लोग मेरी मदद करोगे? राजा की बात सुन तीनों बालक दौड़ कर अपने घर गए और
खाने और पीने के पानी के साथ कुछ समय बाद लौटे। राजा ने अपनी भूख शांत करने के पश्चात कहा मैं तुम तीनों का आभारी हूँ यदि तुम्हें कुछ चाहिए तो मुझे बताओ मैं तुम्हें दे सकता हूं। इतना सुनकर पहला बालक बोला मुझे बंगला, गाड़ी चाहिए ताकि मैं चैन से जीवन बिता सकूँ। दूसरे ने कहा मुझे ढेर सारा रुपया और जेवर
चाहिये ताकि इस दरिद्रता से मुझे छुटकारा मिल सके। राजा ने कहा अवश्य तुम जो भी चाहोगे मै तुम्हें जरूर दूंगा । इतना कहकर राजा ने तीसरे बालक की ओर रुख किया। तुम भी कहो बालक तुम्हें क्या चाहिए? तीसरे बालक ने कहा महाराज मुझे धन दौलत की लालसा नहीं है मेरी बस एक इच्छा है। महाराज ने कहा
कहो, क्या इच्छा है तुम्हारी , मै पढ़ना चाहता हूं, विद्दा अर्जित करना चाहता हूँ । महाराज ने उसे विद्दा ग्रहण करने के लिए आश्रम भिजवा दिया। कुछ समय बाद वो एक विद्वान बन गया और खुशी खुशी राजा ने उसको अपने दरबार में रत्न की उपाधि के साथ स्थान दिया। वहीं बाढ़ आ जाने से दूसरे दोस्त का बंगला
गाड़ी सब तहस नहस हो गया और वापस वह दरिद्र हो गया। तीसरे का भी धन अब खत्म होने को आया था, आखिर रखा धन कितने दिन तक चलने वाला था। विद्वान मित्र की एक दिन पुराने दोनों मित्रों से भेंट हुई तो दोनों को उसने दरिद्र अवस्था में पाया। दोनों विद्वान मित्र से उसकी खुशहाली का कारण
पूछने लगे। विद्वान ने बताया तुम दोनों ने राजा से धन मांगा, जो कि मैं जानता था कि एक दिन समाप्त हो जाएगा। अतः मैंने राजा से विद्यारूपी धन मांगा था। यह धन सदैव मेरे साथ रहेगा। कभी ना खर्च हो सकने वाले इस धन ने मुझे मान सम्मान और प्रतिष्ठा सभी से धनवान बना दिया। दोनों मित्र अब
अपनी मूर्खता पर पछता रहे थे। इसलिए कहा जाता है। कि विद्दा एक अमूल्य धन है जो कभी समाप्त नहीं होता अपितु बढ़ता जाता है। आज के युग में भी विद्दा से बड़ा कोई धन नहीं। अगर कोई विद्द्वान है। तो अपनी शिक्षा के बल पर वह अपना जीवन ख़ुशी से और समृद्ध तरीके से बिता सकता है। ये सीख हर एक युवा को लेनी चाहिए कि चाहे कुछ भी हो जाए अपनी शिक्षा ज़रूर ग्रहण करे ।
शिक्षा के बल पर मान सम्मान और समृद्धि मिल सकती है लेकिन अशिक्षित व्यक्ति का धन एक ना एक दिन तो ख़त्म हो ही जाएगा और वह फिर से दरिद्र बन जाएगा।
12. गिद्ध के उपहार
एक राजा शिकार करने निकले। उन्होंने एक गिद्ध को देखा। यह एक विशाल गिद्ध था और उसके पंख तो इतने लंबे थे कि उनकी छाया में कई लोग खड़े हो सकते थे। राजा ने अपनी बंदूक गिद्ध की ओर करके निशाना साधा।
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तभी गिद्ध बोला; 'हे राजा, मुझे मत मारो। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। तुम चाहो तो मुझे अपने साथ ले जाओ। यदि तुम मुझे एक वर्ष तक अपने साथ रखोगे तो तुम दुनिया के सबसे महान राजा बन जाओगे।' राजा को गिद्ध की बात पर विश्वास तो नहीं था,
फिर भी उन्होंने सोचा कि एक बोलने वाले गिद्ध की बात मानकर देख लेनी चाहिए।इसीलिए वे गिद्ध को अपने साथ ले गए। गिद्ध ने राजमहल में पहुँचते ही खाना माँगा। राजा ने उसे सब कुछ दिया, जो उसने माँगा। गिद्ध इतना ज़्यादा खाना रोज़ खाता था कि उसका पेट भरने के लिए धीरे-धीरे राजा की सारी संपत्ति समाप्त हो गई। फिर भी उन्होंने अपना वादा पूरा किया।
उन्होंने परेशानी में रहकर भी एक वर्ष तक गिद्ध को अपने पास रखा। एक वर्ष पूरा होने पर गिद्ध ने कहा, 'अब समय आ गया है कि मैं तुम्हें तुम्हारा इनाम दे दूँ। तुम मेरी पीठ पर सवार हो जाओ। मैं तुम्हें कहीं ले जाना चाहता हूं राजा गिद्ध की पीठ पर बैठ गया। गिद्ध ने अपने बडे़-बडे़ पंख फैलाए और उड़कर चल दिया। वह राजा के महल से दूर उड़ चला।
धीरे-धीरे सारे गाँव, शहर पीछे छूट गए। अब गिद्ध समुद्र के ऊपर से उड़कर जा रहा था। राजा ने नीचे देखा तो घबरा गए। नीचे दूर-दूर फैला हुआ समुद्र था और वे बहुत ऊँचाई पर उड़ रहे थे। घबराकर राजा ने ईश्वर को याद करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जब गिद्ध नीचे उतरा तो राजा ने ईश्वर को धन्यवाद दिया। गिद्ध बोला, 'राजा, आपको मैंने तीन उपहार दिए हैं।
उन्हें संभालकर रखिएगा।' “तीन उपहार ?” राजा ने आश्चर्य से पूछा। “जी हाँ तीन उपहार। मैंने आपको तीन बातें सिखाई हैं। वही हैं मेरे तीन उपहार। पहला उपहार-दयालु होना, दूसरा उपहार-अपना वचन निभाना और तीसरा उपहार-ईश्वर की शक्ति पर विश्वास करना।अपना सब कुछ गँवाकर भी आपने अपना वचन निभाया, मेरी प्रार्थना सुनकर मुझ पर दया की और मुझे नहीं मारा और कठिन समय में आपने ईश्वर पर विश्वास किया।
अब आपके पास एक अच्छा राजा बनने के सारे गुण हैं। आप अपने महल में वापिस जाइए और प्रजा की सेवा कीजिए।' राजा जब अपनी राजधानी में वापिस लोटे तो उन्होंने देखा कि उनकी वह सारी धन-दौलत, जो गिद्ध को पालने में ख़र्च हो गई थी, वापिस लौट आई है। यह ईश्वर का चमत्कार ही तो था। उन्होंने गिद्ध के रूप में अपने किसी दूत को भेजा था। राजा ने कई वर्षों तक राज्य किया। उनकी प्रजा सदा सुख से रही, क्योंकि उनके राजा एक अच्छे और नेक राजा थे।
13. चींटी और हाथी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक बार एक घमंडी हाथी था जो हमेशा छोटे जानवरों को धमकाता था और उनका जीवन कष्टदायक बनाता था। इसलिए सभी छोटे जानवर उससे परेशान थे। एक बार की बात है अपने घर के पास के चींटी की मांद में गया और चींटियों पर पानी छिड़का।
चींटी और हाथी की कहानी
ऐसा होने पर वो सभी चींटियाँ अपने आकार को लेकर रोने लगीं। क्योकि वो हाथी इनकी तुलना में काफ़ी बड़ा था और इसलिए वो कुछ नहीं कर सकती थीं। हाथी बस हँसा और चींटियों को धमकी दी कि वह उन्हें कुचल कर मार डालेगा। ऐसे में चींटियाँ वहाँ से चुपचाप चली गयी। फिर एक दिन, चींटियों ने एक सभा बुलायी और उन्होंने हाथी को सबक सिखाने का फैसला किया।
अपनी योजना के मुताबिक़ जब हाथी उनके पास आया तब वे सीधे हाथी की सूंड में जा घुसी और उसे काटने लगी। इससे हाथी दर्द से चिल्लाने लगा। क्योंकि चींटियाँ इतनी छोटी थी कि उनका यह हाथी कुछ नहीं कर सकता था। साथ में उसके शूँड के अंदर होने की वजह से वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।
अब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने चींटियों और उन सभी जानवरों से माफी मांगी जिन्हें उसने धमकाया था। उसकी ये पीड़ा देखकर चींटियों को भी दया आयी और उन्होंने उसे छोड़ दिया।
शिक्षा - विनम्र बनो और सभी के साथ दया का व्यवहार करो। अगर आपको लगता है कि आप दूसरों से ज्यादा मजबूत हैं, तो अपनी ताकत का इस्तेमाल उन्हें नुकसान पहुंचाने के बजाय उनकी रक्षा के लिए करना चाहिए।
14. सफलता की कहानी
एक बार की बात है अमेरिका में एक व्यक्ति जो कम पढ़ा लिखा था, नौकरी के लिए एक दफ्तर में गया। काम था साफ़-सफाई का। इंटरव्यू के बाद उसे एक-दो काम करने को कहा गया। लड़का गरीब था और उसे नौकरी की जरुरत भी थी तो उसने बड़ी ही लगन से वो काम किया।
काम देखने के बाद मालिक ने कहा, “शाबाश! मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आया। मैं तुम्हें ये नौकरी देता हूँ। तुम अपनी ईमेल आईडी मुझे दो मैं तुम्हें अपॉइंटमेंट लेटर भेज देता हूँ।”“लेकिन सर, मैंने तो ईमेल आईडी बनायीं नहीं।”“क्यों? आज कल तो सब ईमेल आईडी बना कर रखते हैं इसके बिना तो काम ही नहीं चलता।”
सर मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूँ। और कंप्यूटर चला सकने की मेरी औकात नहीं है। कृपया मुझे इस नौकरी पर रख लीजिये। “देखो, मैं मानता हूँ कि तुम इस नौकरी के काबिल हो लेकिन हम जॉइनिंग ईमेल से ही करवाते हैं। इसलिए तुम जा सकते हो। इतना सुन लड़का निराश होकर वहां से निकल गया। रास्ते में चलते-चलते उसने देखा कि एक औरत सब्जी वाले से टमाटर के बारे में पूछ रही थी और उसके पास टमाटर नहीं थे।
औरत बूढ़ी थी और बाजार जा नहीं सकती थी। तभी उसे एक ख्याल आया। उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो उसने देखा कि उसके पास $10 बचे थे। वह तुरंत बाजार गया और $10 के टमाटर ले आया। उसने वो टमाटर उस बूढ़ी औरत को बेच दिए। कुछ मुनाफा हुआ देख वह दुबारा बाजार गया और कुछ टमाटर और ले आया।
उन टमाटरों को लेकर वह घर-घर गया और उन्हें बेचने की कोशिश की। 2-4 घर घूमने के बाद एक घर में किसी ने $15 में टमाटर खरीद लिए। जब उसने ये देखा की एक बार टमाटर बेचने में उसे $15 का फ़ायदा हुआ है तो वह दुबारा गया और फिर से उन टमाटरों को बेच दिया। उस दिन से उसने अगले दिन टमाटर खरीदने के लिए थोड़े पैसे बचा लिए और बाकी के पैसों से खाने का इंतजाम किया।
उस दिन के बाद कुछ और दिनों तक वह इसी तरह टमाटर बेचता रहा। उसका काम काफी बढ़ चुका था। और आगे-आगे यह बढ़ता ही जा रहा था। टमाटर लाने के लिए पहले वह किराये पर गाड़ी लाने लगा। पैसे इकट्ठे कर उसने अपनी गाड़ी ली।
ज्यादा पैसे हो जाने पर उसने एक और गाड़ी ली और उसके लिए ड्राईवर भी रख लिया। ये कोई किस्मत का खेल नहीं था। यह सब उस लड़के की सूझ-बूझ और हिम्मत का परिचय था। कुछ ही सालों में उसने टमाटर के व्यापार से बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था। अब वह एक संपन्न व्यक्ति बन चुका था। थोड़े ही दिनों में उसकी शादी हो गयी।
शादी किए कुछ वर्षों बाद ही उसके घर में बच्चों की किलकारियां गूंजने लगी। अब उसे किसी भी चीज की परेशानी नहीं थी। सब चीजों से जब वह बेफिक्र हुआ तो उसने सोचा कि अब उसे अपना बीमा करवा लेना चाहिए। इससे यदि उसे कुछ हो गया तो भविष्य में उसके परिवार वालों को आर्थिक तौर पर कोई परेशानी न हो।
बीमा करवाने के लिए उसने बीमा एजेंट को फ़ोन किया। अगले दिन बीमा एजेंट उस व्यक्ति के पास आया। फॉर्म भरते समय सब कुछ भरने के बाद एक कॉलम खाली रह गया। यह कॉलम था ईमेल आईडी का। उस एजेंट ने पूछा, “सर आपकी ईमेल आईडी क्या है?” “सॉरी, मेरी कोई ईमेल आईडी नहीं है।” एजेंट को लगा कि वो मजाक कर रहा है।“सर क्या मजाक कर रहें हैं आप भी….”
“नहीं, मैंने कोई मजाक नहीं किया। सचमुच मेरी कोई ईमेल आईडी नहीं है।” “सर आपको पता है अगर आपने ईमेल आईडी का उपयोग किया होता तो आपका व्यापार और कितना आगे बढ़ सकता था। आपको पता है आज आप क्या होते?” उस व्यक्ति ने कहा “एक कंपनी में मामूली सफाई वाला होता, इस उत्तर से वो एजेंट सुन्न रह गया।
उसे कुछ समझ नहीं आया। तब उस व्यक्ति ने उसे अपनी कहानी सुनाई। जिसे सुन एजेंट को ये एहसास हुआ कि इंसान के अन्दर इच्छा हो तो वो कुछ भी हासिल कर सकता है। और इसके लिए जरुरी नहीं कि उसके पास सभी साधन मौजूद हों।
दोस्तों ऐसे ही परिस्थितियां हमारे जीवन में भी कई बार आती हैं। तब हमें लगता है कि काश अगर ये चीज हमारे पास होती तो आज हम कहीं और होते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। हमें अपना नजरिया बदलने की जरुरत है। हो सकता है वो चीज भगवान ने हमें इसलिए न दी हो कि हम उससे ज्यादा प्राप्त करने के काबिल हों।
परन्तु हम ज्यादा पाने का प्रयास न करके मौके तलाशते रहते हैं जो हमें आगे बढ़ा सके। एक बार खुद कोशिश तो करो। अपना नजरिया बदल कर तो देखो। उस विचार को अपने मन में तो लाओ। छोड़ दो रोना उस चीज के लिए जो तुम्हारे पास नहीं है और बदल दो दुनिया को उन चीजों से जो तुम्हारे पास है।
अगर तुम आज हार नहीं मानोगे तो आने वाला कल तुम्हारा होगा और यदि तुमने आज हार मान ली तो आने वाला कल कभी नहीं आ पाएगा। हालातों को दोष देना छोड़िये। कदम बढ़ाइये
15. चालाक बुजुर्ग आदमी की कहानी
एक दिन एक ट्रेन में एक बुजुर्ग आदमी यात्रा कर रहा था। ट्रेन के उसी डिब्बे में 5-6 नौजवान लड़के भी बैठे थे । तभी उस नौजवान लड़को के मन में कुछ शरारत करने का विचार आता है । ये विचार यह था की उन लोगो को ट्रेन की चैन खींचनी थी ।
फिर उन लड़को के दिमाग में एक ख्याल आता है की , अगर ट्रेन की चैन खीचेंगे तो हमें फाइन भरना पड़ेगा। उन में से एक लड़का बोलता है की कोई बात नहीं हम फाइन भर देंगे । सभी लोग 100 – 100 , 150 – 150 रूपये इकट्ठा करलो , जितना भी फाइन लगेगा हम भर देंगे। सभी ने पैसे इकठ्ठे कर लिए , पूरे मिलाकर 900 रूपये इकठ्ठे हुए , ट्रेन में सफर कर रहा वो बुजुर्ग ये सब देख रहा था ।
फिर उन लड़को के मन में आता है की क्यों न हम कुछ ऐसा करे की हम चैन भी खींच ले और हमें फाइन भी ना भरना पड़े। उसमें से एक लड़का बोलता है , हां मेरे पास एक अच्छा विचार है जिससे हम चैन भी खींच लेंगे और फाइन भी न भरना पड़ेगा । बाकि के सभी लोग उसे बड़ी उत्सुकता के साथ पूछने लगे ,
जल्दी बताओ ऐसा कौन सा विचार है तुम्हारे पास। उस लड़के ने कहा क्यों न हम ट्रेन की चैन खींच के उसका आरोप इस बूढ़े पे लगा दे । ऐसा करने से हमारे पैसे भी बच जायेगे और चैन खींचने का मजा भी आएगा । वो बुजुर्ग आदमी ये सब सुन रहा था । उसने इन लड़को से ये भी कहा की मुझे क्यों परेशान कर रहे हो। लेकिन ये सभी लड़के बोल रहे थे की नहीं हम तो परेशान करेंगे ।
इतने में एक लड़के ने चैन खींच दी । वो बुजुर्ग आदमी सोच रहा था की अब तो कुछ हो ही नहीं सकता है । वो चुप चाप बैठ गया। कुछ देर में ट्रेन के अधिकारी आये और उन्होंने पूछा की ये ट्रेन की चैन किसने खींची ? उन सभी लड़को ने कहा की इस बूढ़े आदमी ने चैन खींची । तभी वह अधिकारी ने उस बुजुर्ग से पूछा की आपने ट्रेन की चैन क्यों खींची ?
तभी उस बुजुर्ग ने उस अधिकारी के कहा की इन लड़को ने मेरे 900 रूपये छीन कर अपनी जेब में रख लिए हैं तो मैने परेशान होकर ट्रेन की चैन खींच दी। उस अधिकारी ने तुरंत लड़को की जेब चेक की और उन्हें 900 रूपये मिले जो की इस लड़को ने इकठ्ठे किये थे । उन्होंने वो 900 रूपये इस बुजुर्ग को दे दिए और उन सभी को आगे की कार्यवाही करने के लिए पोलिश स्टेशन में बुलाया। सभी लड़के अपने किये पे पछता रहे थे लेकिन अब पछताने का कोई फायदा नहीं था।
शिक्षा - हमें किसी बुजुर्ग आदमी से कुछ न कुछ सीखना चाहिए न की उन्हें परेशान करने के बारे में सोचना चाहिए । क्योकि हम जो काम आज कर रहे है वो ये काम कई साल पहले ही कर के बैठे हैं इसलिए हमें उनका आदर करना चाहिए ।
16. चिड़िया का घोसला की कहानी
एक बार की बात है गर्मी की छुट्टियों में एनी अपनी सहेलियों के साथ खेलने के बजाय सारा दिन पार्क में बैठी छोटे-छोटे पक्षियों को घोंसला बनाते देखती रहती थी। पार्क में तरह-तरह के पक्षी आते थे। गौरैया, कबूतर, कठफोड़वा, लवा और बुलबुल। एनी किसी भी पक्षी को देखते ही पहचान जाती थी,
क्योंकि उसकी मैम ने उसे सभी पक्षियों के सुंदर चित्र दिखाए थे और कहा था कि इन छुट्टियों में तुम सब पक्षियों की आदतें गौर से देखना और गरमी की छुट्टियों के बाद जब स्कूल खुलेगा तब तुम सबको पक्षियों पर एक लेख लिखने के लिए दिया जाएगा। सबसे अच्छे लेख पर जो किताब इनाम में दी जाने वाली थी, वह भी बच्चों को दिखाई गई थी।
मैम ने उन्हें जानवरों और पक्षियों की कहानियों वाली उस किताब के रंगीन चित्र भी दिखाए थे और कहानियां भी पढ़कर सुनाई थी। एनी को वह किताब इतनी पसंद आई थी कि उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि जैसे भी हो वह इस किताब को पाने के लिए मेहनत करेगी और इसलिए एनी अपनी छुट्टियां खेलने के बजाय पार्क में बैठकर पक्षियों की आदतों को जानने में गुजार रही थी।
एनी देखती कि पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए कितने धैर्य से छांटछांट कर पुरानी सुतली, घास, पत्तियां और घोंसले को आरामदेह बनाने के लिए पंख आदि जमा करते हैं । एनी का जी चाहता, कितना अच्छा होता कि मैं भी इन पक्षियों की कुछ मदद कर सकती। अचानक एनी को एक खयाल आया । इन दिनों ज्यादातर पक्षियों ने अपने घोंसले बना लिए थे, फिर भी कुछ पक्षी ऐसे थे जिनके घोंसले अभी तक तैयार नहीं हुए थे।
कुछ शरारती लड़कों ने पत्थर मारकर इनके घोंसले नष्ट कर दिए थे। एनी ने उन्हें गुस्सा कर रोकना चाहा। एनी ने सोचा-क्यों न मैं अपने हाथों से एक घोंसला बनाकर बगीचे के किसी पेड़ पर लटका दूं। हो सकता है कोई पक्षी वहां रहने आ जाए, आह, कितना अच्छा लगेगा जब पक्षी वहां अंडे देंगे और कुछ दिनों में घोंसला छोटे-छोटे पक्षियों से भर जाएगा।
पक्षियों की चहचहाहट से मेरे बगीचे में रौनक आ जाएगी, यह सोचकर एनी बहुत खुश हुई। अब तो एनी को अपने आप गुस्सा आ रहा था कि इतनी अच्छी बात उसे पहले क्यों नहीं सूझी ? कुछ मिनटों का ही तो काम होगा और बस घोंसला तैयार हो जायेगा। पक्षियों के चोंच से बने घोंसलों के मुकाबले मेरा यह घोंसला ज्यादा सफाई से बना हुआ होगा, एनी ने सोचा। अगले दिन एनी की मां यह देखकर बड़ी हैरान हुई कि एनी सारा दिन तिनके, कागज आदि ही बुनती रहती है।
कहां तो एनी ने सोचा था कि घोंसला बनाना तो कुछ मिनटों का ही काम है और कहां एनी को सारी शाम घोंसला बनाते- बनाते गुजर गई। घोंसला को टिकाने के लिए एनी ने बांस की कुछ तीलियां भी लगाई थी । अब वे तीलियां टिक नहीं रही थी। बेचारी एनी ने धागे की पूरी रील लगा दी। तब कहीं जाकर घोंसला इधर-उधर से बंध कर तैयार हुआ,
पर घोंसला अजीब ऊबड़खाबड़ सा बना था। यह तो पक्षियों को बहुत चुभेगा, यह सोचकर एनी,अपनी मां के पास गई और बोली, मां, यह घोंसला अंदर से कितना सख्त है, इसे जरा नरम बना दो न। मां ने एक छोटी कटोरी ली और घोंसले के अंदर उसे गोलमोल घुमाकर काफी हद तक उसे आरामदेह बना दिया । ऊबड़खाबड़ तिनके और कागज बैठ गए थे। अब एक छोटा सा घोंसला तैयार था जो न गोल कहा जा सकता था, न चौड़ा और न लंबा ।
चिड़ियाँ चोंच से घोंसला बनाती है, पर कितने सलीके और सफाई से बनाती हैं । हाथों से तो कभी ऐसे घोंसला बना ही नहीं जा सकता। सुबह एनी ने बड़ी शान से वह घोंसला बगीचे के एक पेड़ पर लटका दिया और खुद कुछ दूरी पर खड़ी इंतजार करती रही कि कोई पक्षी आकर उसे अपना घर बना ले। पर जब काफी समय गुजर गया और कोई पक्षी न आया तो एनी बड़ी निराशा हुई ।
अचानक उसने देखा लवा पक्षियों के एक जोड़े ने, वो घोंसले के ऊपर मंडरा रहा था, चोंच मार मारकर घोंसला तोड़फोड़ डाला । 'शैतान, पक्षी ' गुस्से से एनी बड़बड़ाई। एनी की आवाज सुनकर उसकी मां वहां आ गई। मां, देखो न, उन्हें मेरा घोंसला पसंद नहीं आया, मां भी वहीं खड़ी होकर पक्षियों की हरकतें देखने लगी। अचानक मां जोर से हंस पड़ी, देखो, एनी, ये पक्षी पहले घोंसले से तिनके चुन चुन कर एक नया घोंसला तैयार कर रहे हैं। हो सकता है ये लोग और किसी के बनाए घोंसलों में रहना पसंद न करते हों ।
मां, मैं जो लेख लिखूंगी , उसमें यह बात भी जरूर लिखूंगी, एनी बोली। एनी, पक्षियों ने घोंसला चाहे जिस कारण तोड़ा हो, पर वे तुम्हारा बड़ा एहसान मान रहे होंगे कि तुमने घोंसला बनाने का सारा सामान एक जगह जमा कर रखा है, मां ने कहा। मां, तुम ने एक बात पर गौर किया ? एनी ने मां से कहा, यह लवा अपना घोंसला झाड़ियों के अंदर बनाती है। हाँ, एनी, अभी तक तो मैंने यही देखा सुना था कि लवा अपना घोंसला पेड़ पर या घरों के रोशनदानों आदि में बनाती है ।
आज पहली बार मैं यह तरीका देख रही हूँ। एनी सारा दिन बगीचे में बैठी लवा पक्षियों को काम में जुटे देखती रहती। एनी की मौजूदगी मे पक्षी भी बुरा नहीं मानते थे। शायद उन्हें पता था कि वह उनकी मित्र है। जल्दी ही घोंसला छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भर गया । इसी बीच एनी को लवा पक्षी की एक और दिलचस्प आदत का पता चला।
आमतौर पर पक्षी उड़ते हुए आते हैं और सीधे अपने घोंसले पर ही उतरते हैं, पर लवा कभी ऐसा नहीं करती। वह हमेशा अपने घोंसले से थोड़ी दूरी पर उतरती है और फिर फुदक फुदक कर और थोड़ा इधर-उधर पता चले। घूम कर अपने घोंसले में जाती है । शायद वह नहीं चाहती कि किसी को उसी के घोंसले की जगह पता चले। छुट्टियों के बाद जब लेख प्रतियोगिता हुई तो एनी को प्रथम पुरस्कार मिला ।
इनाम वाली किताब हाथ में पकड़े एनी अपनी सहेलियों को बता रही थी, तुम्हें पता है, मैंने एक नहीं दो इनाम जीते हैं । एक तो यह किताब और दूसरा अपने बगीचे में छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भरा घोंसला ।
शिक्षा - इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि "कोई प्रतियोगिता जीतने से ज्यादा, दूसरों की मदद करके खुशी मिलती है । "
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