क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं ? How to Earn Points from Credit Card

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 क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं :- आज के समय में, क्रेडिट कार्ड न केवल एक भुगतान उपकरण है, बल्कि यह आपको विभिन्न फायदे और इनाम भी देता है। जब आप क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो कई कार्ड कंपनियां आपको प्वाइंट्स, कैश बैक या अन्य पुरस्कार देती हैं। इन प्वाइंट्स को आप विभिन्न चीजों पर खर्च कर सकते हैं जैसे कि फ्लाइट टिकट, होटल स्टे, शॉपिंग, या यहां तक कि कैश बैक के रूप में भी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से। क्रेडिट कार्ड से प्वाइंट्स कैसे कमाएं 1. क्रेडिट कार्ड की कैटेगरी का चुनाव करें प्वाइंट्स कमाने के लिए सबसे पहले यह महत्वपूर्ण है कि आप जिस क्रेडिट कार्ड का उपयोग करें, वह आपके खर्चों के प्रकार के लिए उपयुक्त हो। उदाहरण के लिए, अगर आप यात्रा करना पसंद करते हैं, तो यात्रा संबंधित क्रेडिट कार्ड चुनें। अगर आप रेस्टोरेंट्स में अधिक खर्च करते हैं, तो ऐसे कार्ड का चयन करें जो रेस्टोरेंट खर्चों पर अधिक प्वाइंट्स ऑफर करता हो। कुछ सामान्य क्रेडिट कार्ड कैटेगरी हैं: ट्रैवल कार्ड – जो यात्रा संबंधित खर्चों पर अ...

बदसूरत बत्तख की कहानी | Hindi Reading Practice | Hindi Story

 बदसूरत बत्तख की कहानी

एक जंगल में एक बत्तख रहती थी। नदी किनारे उसका घर था। उसने पाँच अंडे दिए थे, जिन्हें वह दिन-रात बड़े धैर्य से सेती थी। उसे अंडों में से बच्चों के निकलने का इंतज़ार था। आखिर वह दिन भी आया, जब अंडों में से बच्चे निकले। नन्हें-नन्हें बच्चों को देख बत्तख बहुत ख़ुश हुई। लेकिन, एक अंडा अब तक नहीं फ़ूटा था।

बदसूरत बत्तख की कहानी | Hindi Reading Practice
बदसूरत बत्तख की कहानी

 वह अंडा आकार में अन्य अंडों से बड़ा था और उसका रंग भी अधिक भूरा था। बत्तख के नन्हे-नन्हे बच्चे नदी में खेलना चाहते थे। वे तैरना सीखना चाहते थे। वे अपनी माँ से बोले, “माँ, हमें नदी में ले चलो। लेकिन बत्तख अपने सारे बच्चों को एक साथ नदी में ले जाना चाहती थी और एक अंडा अब तक नहीं फ़ूटा था। इसलिए उसने अपने बच्चों को इंतज़ार करने को कहा। सभी नन्हे बत्तख बहुत उदास हुए, लेकिन उन्होंने अपनी माँ की बात मान ली। 

कुछ दिन बीते और सबका इंतज़ार खत्म हुआ। अंतिम अंडा फूटा और उसमें से जो निकला, उसे देख माँ बत्तख और सारे नन्हे बत्तख हैरान रह गये। वह दिखने में अन्य बत्तखों से कुछ अलग था। उसके सिर का आकार काफ़ी बड़ा था, चोंच अधिक लंबी थी और पंख मटमैले से थे। उसे देख सभी नन्हें बत्तख एक साथ बोले, “ये कितना बदसूरत है माँ। माँ बत्तख इस बात पर दु:खी हुई। उसे तो अपने सभी बच्चे प्यारे थे। वह सबसे एक समान प्यार करती थी। 

वह उन्हें समझाते हुए बोली, “तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। ये तुम्हारा भाई है। अब तुम सबको साथ मिलकर रहना है। फिर वह सबको नदी ले गई और उन्हें तैरना सिखाने लगी। सभी नन्हें बत्तख बहुत ख़ुश थे और आपस में खेल रहे थे। बदसूरत बत्तख भी उनके साथ खेलना चाहता था। लेकिन उन्होंने उसे अपने साथ शामिल नहीं किया। बल्कि, वे उस पर हंसने लगे और उसका मज़ाक उड़ाने लगे। वे कहने लगे, “देखो देखो, इसका चेहरा देखो। 

ये हमसे कितना अलग है। हम कितने ख़ूबसूरत है और ये कितना बदसूरत। हम इसके साथ नहीं खेलना चाहते। हम इसके साथ नहीं रहना चाहते। बदसूरत बत्तख उनकी बात सिर झुकाए सुनता रहा। वह अकेला और उदास था। माँ बत्तख ने उसे समझाया कि उसे अपने भाइयों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन उसकी उदासी दूर नहीं हुई। हर दिन सभी नन्हे बत्तख मिलकर उसका मज़ाक उड़ाते और उस पर हँसते थे। 

धीरे-धीरे उसकी माँ ने भी उसके भाइयों को मना करना बंद कर दिया।बदसूरत बत्तख को लगने लगा कि उसकी माँ भी उसे प्यार नहीं करती। वह ऐसी जगह नहीं रहना चाहता था, जहाँ उसे कोई प्यार न करे। इसलिए एक रात वह घर छोड़कर भाग गया। वह जंगली वनस्पतियों, झाड़ियों और पेड़-पौधों से होता हुआ चलता गया। धूल-मिट्टी, कीचड़ से आगे बढ़ता गया। कई दिन गुजर गए। आखिर एक दिन वह एक तालाब पर पहुँचा, जिसमें बत्तखों का एक परिवार तैर रहा था।

 वे सभी ख़ुश थे। वे आपस में बातें रह रहे थे, खेल रहे थे, मज़े कर रहे थे। बदसूरत बत्तख उनके साथ खेलना चाहता था। वह उनके पास गया और उनका अभिवादन किया। उसने देखते ही वे बत्तख बोले, “कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो। बदसूरत बत्तख कुछ कहता इसके पहले ही वे फिर से बोले, “ओह, तुम कितने बदसूरत हो। हमारे पास मत आना। चले जाओ यहाँ से।” 

बदसूरत बत्तख ने अपनी परछाई पानी में देखी। धूल-मिट्टी और कीचड़ के कारण वह बहुत गंदा हो गया था। वह ख़ुद से बोला, “मैं इतना बदसूरत क्यों हूँ? क्या कोई मुझे पसंद नहीं करेगा? क्या कोई मेरा दोस्त नहीं बनेगा?” फिर वह वहाँ से चला गया। वह ऐसी जगह जाना चाहता था, जहाँ लोग उसे प्यार करें, उसे अपना समझें। लेकिन उसे पता नहीं था कि ऐसे लोग उसे कहाँ मिलेंगे। बस वह चला जा रहा था। धूल-मिट्टी, कीचड़ और झाड़ियों से गुजरकर वह पहले से और अधिक गंदा हो गया। 

कई दिनों के सफ़र के बाद वह एक बड़े तालाब पर पहुँचा, वहाँ उसने भूरे रंग के बत्तखों को देखा। उन्हें देख वह सोचने लगा कि इनका रंग तो मेरे जैसा ही है। शायद ये मुझे अपने साथ रहने दें। शायद, ये मुझसे दोस्ती कर लें।वह तैरता हुआ उनके पास गया और उनका अभिवादन किया। उसे देख भूरे बत्तख बोले, “कौन हो तुम? कहाँ से आये हो? ओह,


 कितने गंदे हो तुम? कितने बदसूरत हो तुम?”ये बात सुनकर बदसूरत बत्तख ने सिर झुका लिया। वह बहुत दु:खी था। वह वहाँ से भी जाने के बारे में सोचने लगा, तभी उन बत्तखों में से सबसे बड़ा बत्तख बोला, “तुम कुछ अजीब से दिखते हो। पता नहीं कहाँ

 से आये हो? लेकिन फिर भी मैं तुम्हें अपने साथ रहने की इज़ाज़त देता हूँ। बस तुम्हें हमारी हर बात माननी होगी। ये सुनकर बदसूरत बत्तख बहुत ख़ुश हुआ। उस दिन के बाद से वह उनके साथ रहने लगा। वह उनके साथ खेलता, पानी में तैरता और ढेर सारी बातें करता। उन सबका व्यवहार भी उसके साथ बहुत अच्छा था। बदसूरत बत्तख ख़ुशी-ख़ुशी दिन बिता रहा था। 

इस तरह कई दिन गुज़र गए। एक दिन अचानक उस तालाब के पास एक शिकारी आ गया। उसने अपना तीर-कमान निकाला और भूरे बत्तखों पर निशाना साधने लगा। बदसूरत बत्तख डर गया और एक कोने में चुपचाप खड़ा हो गया। सारे भूरे बत्तखों को मारने के बाद शिकारी की नज़र बदसूरत बत्तख पर पड़ी। उसे देख वह बोला, “अरे तुम क्या चीज़ हो? बड़े बदसूरत हो तुम। इतना कहकर वह चला गया। बदसूरत बत्तख बहुत दु:खी हुआ। 

वह सोचने लगा कि क्या मैं इतना बदसूरत हूँ कि एक शिकारी भी मेरा शिकार नहीं करना चाहता। वह फिर से अकेला रह गया था। वह उस स्थान को छोड़कर चला गया। वह चलता जा रहा था। समय गुजरता जा

 रहा था। वह बड़ा हो रहा था। उसके पंख निकलने लगे थे। अब वह कुछ दूरी तक उड़ने भी लगा था। कई दिनों तक वह यूं ही भटकता रहा। उसका भूख के मारे बुरा हाल था। वह बहुत कमज़ोर हो गया था। अब उसमें उड़ने और चलने की ताकत भी शेष नहीं थी।

 किसी तरह वह गाँव के घर में जाकर बैठ गया। अब उसमें आगे जाने की शक्ति नहीं बची थी। वहीं बैठे-बैठे वह सो गया। सुबह एक आवाज़ सुनकर उसकी नींद खुली। “अरे ये क्या है?” यह उस घर में रहने वाले किसान की आवाज़ थी। “शायद बत्तख

  है उसकी पत्नी बोली । किसान और उसकी पत्नी ने उसे इस आशा से अपने घर पर रख लिया कि उससे उन्हें कुछ अंडे मिल जायेंगे। लेकिन कई दिन बीत गए और बदसूरत बत्तख ने कोई अंडा नहीं दिया। वह दिन पर दिन बड़ा होते जा रहा था। किसान और उसकी पत्नी को वह पसंद था, लेकिन उनके छोटे से घर में अब उसके लायक जगह नहीं बची थी।

 इसलिए एक दिन उन्होंने उसे यह कहकर भगा दिया कि जाओ, अब तुम अपने परिवार को खोजो। वही तुम्हें अपने साथ रखेंगे। वही तुम्हें प्यार करेंगे। दु:खी बदसूरत बत्तख वहाँ से चला गया। सर्दियों का मौसम आ चुका था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। नदी-तालाब जम गये थे। फूल-पत्तियों को बर्फ़ की परत ने ढक लिया था। ऐसे मौसम में किसी तरह खुद को बचाकर वह चलता गया।

 समय बीता मौसम बदला। वसंत का मौसम आ गया। बर्फ़ पिघलने लगी। चारों ओर हरियाली छा गई। लेकिन बदसूरत बत्तख दु:खी था। वह एक तालाब के किनारे पहुँचा। उसने उस तालाब में सबसे सुंदर पक्षी हंस के परिवार को तैरते हुए देखा। वह उन्हें देख तो रहा था। लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उनके पास जा सके और कह सके कि मुझे अपने साथ रहने दो,

 क्योंकि उसे तो उसके अपने परिवार ने, अन्य बत्तखों के, यहाँ तक कि इंसानों ने भी दुत्कार दिया था। तभी एक हंस तैरता हुआ उसके पास आया और बोला, “अरे तुम्हारे पंख तो हमारे पंखों से भी ज्यादा सफ़ेद हैं। देखो, सूर्य के रोशनी में ये कैसे चमक रहे हैं। तुम कितने सुंदर हो?” यह सुनकर बदसूरत बत्तख हैरान रह गया। उसने तालाब के साफ़ पानी में अपनी परछाई देखी और उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। अब वह एक बदसूरत बत्तख नहीं था।

 वह तो एक बत्तख ही नहीं था। वह हंस था। सफ़ेद पंखों वाला, लंबी गर्दन और चोंच वाला हंस।वह पानी में गया और हंसों के परिवार से मिला। उससे मिलकर सभी बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने उसे अपने परिवार में शामिल कर लिया। वे सब उससे बहुत प्यार करते, उसके साथ खेलते-तैरते और अपना समझते थे। वह बहुत ख़ुश था। एक दिन सभी हंस पानी में तैर रहे थे। तभी एक व्यक्ति अपनी पत्नी और बेटे के साथ वहाँ आया। 

उस हंस ने उसे पहचान लिया। वह किसान और उसका परिवार था। वह तैरते हुए किनारे गया। किसान बोला, “लगता है तुम्हें नया परिवार मिल गया है, जो तुम्हें प्यार करता है । तुम बड़े ख़ुश भी नज़र आ रहे हो। आज मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि तुम सबसे सुंदर हंस हो।किसान से अपनी तारीफ़ सुनकर वह बहुत ख़ुश हुआ। अब सच में उसकी ज़िंदगी बदल चुकी थी। वह अपने नए परिवार के साथ ख़ुशी-ख़ुशी ज़िंदगी बिताने लगा।

 शिक्षा - किसी को सिर्फ़ शक्ल और सूरत या ख़ूबसूरती के आधार पर नहीं आंकना चाहिए। सबसे समान व्यवहार करना चाहिए, भले ही वह आपसे अलग हों।



हमेशा सीखते रहो की कहानी | hindi reading practice | Hindi Story


एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया। शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये। फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। दोनों का व्यवसाय चल पड़ा। दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली।
 
हमेशा सीखते रहो की कहानी | hindi reading practice | Hindi Story
हमेशा सीखते रहो की कहानी



व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरा काम चल पड़ा है। अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा। लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ। अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा। वह उन कारणों को तलाशने लगा, 

जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया। सबसे पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था। वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है। उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया । 
अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा। दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा। तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया। बहुत घाटा झेलना पड़ा। तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो। तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?” 

यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी। जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ। इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता। 

बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है। दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ। सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था। वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा। उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया।
 
शिक्षा - दोस्तों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये। यहाँ  नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं। यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछल जायेंगे। क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है। जिसने दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है। इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता ।





 समस्या का दूसरा पहलू की कहानी |  hindi reading practice| Hindi Reading


पिता ऑफिस का काम करने में व्यस्त था। उसका १० साल का बच्चा बार-बार कोई ना कोई सवाल लेकर उसके पास आता और पूछ-पूछकर तंग करता। बच्चे  की इस हरकत से पिता परेशान हो रहा था। 

इसका हल निकालते हुए उसने सोचा क्यों ना बच्चे को कोई ऐसा काम दे दूं, जिसमें वह कुछ घंटे उलझा रहे। उतने समय में मैं अपना काम निपटा लूंगा। अबकी बार जब बच्चा आया, तो पिता ने एक पुरानी किताब उठा ली। उसके एक पेज पर वर्ल्ड मैप बना हुआ था। उसने किताब का वह पेज फाड़ दिया और फिर उस पेज को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया। 

वे टुकड़े बच्चे को देते हुए बोला, “यह पेज पर वर्ल्ड मैप बना हुआ था। मैंने इसे कुछ टुकड़ों में बांट दिया है। तुम्हें इन टुकड़ों को जोड़कर फिर से वर्ल्ड मैप तैयार करना है। जाओ इसे जाकर जोड़ो। जब वर्ल्ड मैप बन जाये, तब आकर मुझे दिखाना। बच्चा वो टुकड़े लेकर चला गया। 

इधर पिता ने चैन की सांस ली कि अब कई घंटों तक बच्चा उसके पास नहीं आयेगा और वह शांति से अपना काम कर पायेगा। लेकिन 5 मिनट के भीतर ही बच्चा आ गया और बोला, “पापा, देखिये मैंने वर्ल्ड मैप बना लिया। पिता ने चेक किया, तो पाया कि मैप बिल्कुल सही जुड़ा था। 

उसने हैरत में पूछा, “ये तुमने इतनी जल्दी कैसे कर लिया। “ये तो बहुत ही आसान था पापा। आपने जिस पेज के टुकड़े मुझे दिए थे, उसके एक साइड पर वर्ल्ड मैप बना था, एक साइड पर कार्टून। मैंने कार्टून को जोड़ दिया, वर्ल्ड मैप अपने आप तैयार हो गया। पिता बस बच्चे को देखता रह गया।
 
शिक्षा - अक्सर हम पर कोई बड़ी समस्या सामने आने पर उसे देख ये सोच लेते हैं कि समस्या बहुत बड़ी है और वो हल हो ही नहीं सकती। हम उसका एक पहलू देखते हैं और अपना दृष्टिकोण बना लेते हैं। जबकि उसका दूसरा पहलू भी हो सकता है, जहाँ से उसका हल बहुत आसानी से निकल सकता है। इसलिए जीवन में जब भी समस्या आये, तो हर पहलू देखकर उसका आंकलन करना चाहिए। कोई न कोई आसान हल ज़रूर मिल जायेगा ।



चार मोमबत्तियाँँ की कहानी | hindi reading practice | Hindi Reading



रात का समय था। चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। केवल एक ही कमरा प्रकाशित था। वहाँ चार मोमबत्तियाँ जल रही थी। चारों मोमबत्तियाँ एकांत देख आपस में बातें करने लगी। पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ।

चार मोमबत्तियाँँ की कहानी | hindi reading practice | Hindi Reading
चार मोमबत्तियाँँ की कहानी

 
जब मैं इस दुनिया को देखती हूँ, तो बहुत दु:खी होती हूँ. चारों ओर लूटपाट और हिंसा का बोलबाला है। ऐसे में यहाँ रहना बहुत मुश्किल है। मैं अब यहाँ और नहीं रह सकती।” इतना कहकर मोमबत्ती बुझ गई।दूसरी मोमबत्ती भी अपने मन की बात कहने लगी, “मैं विश्वास हूँ। मुझे लगता है कि झूठ, धोखा, फरेब, बेईमानी मेरा वजूद ख़त्म करते जा रहे हैं। 

ये जगह अब मेरे लायक नहीं रही। मैं भी जा रही हूँ।” इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। तीसरी मोमबत्ती भी दु:खी थी। वह बोली, “मैं प्रेम हूँ। मैं हर किसी के लिए हर पल जल सकती हूँ। लेकिन अब किसी के पास मेरे लिए वक़्त नहीं बचा। स्वार्थ और नफरत का भाव मेरा स्थान लेता जा रहा है। 

लोगों के मन में अपनों के प्रति भी प्रेम-भावना नहीं बची। अब ये सहना मेरे बस की बात नहीं। मेरे लिए जाना ही ठीक होगा। कहकर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। तीसरी मोमबत्ती बुझी ही थी कि कमरे में एक बालक ने प्रवेश किया। मोमबत्तियों को बुझा हुआ देख उसे बहुत दुःख हुआ। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। दु:खी मन से वो बोला,

 “इस तरह बीच में ही मेरे जीवन में अंधेरा कर कैसे जा सकती हो तुम। तुम्हें तो अंत तक पूरा जलना था। लेकिन तुमने मेरा साथ छोड़ दिया। अब मैं क्या करूंगा?” बालक की बात सुन चौथी मोमबत्ती बोली, “घबराओ नहीं बालक मैं आशा हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ। 

जब तक मैं जल रही हूँ, तुम मेरी लौ से दूसरी मोमबत्तियों को जला सकते हो। चौथी मोमबत्ती की बात सुनकर बालक के आंसू बंध हो गए। उसने आशा के साथ शांति, विश्वास और प्रेम को पुनः प्रकाशित कर लिया।
 
शिक्षा - जीवन में समय एक सा नहीं रहता। कभी उजाला रहता है, तो कभी अँधेरा। जब जीवन में अंधकार आये, मन अशांत हो जाये, विश्वास डगमगाने लगे और दुनिया पराई लगने लगे। तब आशा का दीपक जला लेना। जब तक आशा का दीपक जलता रहेगा, जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता।आशा के बल पर जीवन में सबकुछ पाया जा सकता है। इसलिए आशा का साथ कभी ना छोड़े ।



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